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कार्यस्थल में महिला भागीदारी

जब हम कार्यस्थल में महिला भागीदारी, एक ऐसी प्रक्रिया है जो कंपनियों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती है. इसे अक्सर जेंडर इक्वालिटी इन द वर्कप्लेस कहा जाता है, और इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समान अवसर प्रदान करना है। साथ ही समानता, लिंग के आधार पर किसी भी भेदभाव को खत्म करना और सशक्तिकरण, महिला कर्मचारियों को निर्णय लेने की शक्ति देना इस लक्ष्य के दो मुख्य स्तंभ हैं।

कंपनियों में कार्यस्थल में महिला भागीदारी का असर सिर्फ सामाजिक न्याय तक सीमित नहीं है; यह सीधे ही उत्पादकता और नवाचार को बढ़ाता है। अध्ययन बताते हैं कि जब महिला कर्मचारियों की आवाज़ सुनवाई जाती है तो टीम की समस्या‑समाधान क्षमता 30 % तक बढ़ जाती है। इसलिए कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब विविधता‑बोर्ड, मेंटरशिप प्रोग्राम और लचीले कार्य समय को अनिवार्य कर रही हैं। ये उपाय न केवल लिंग समानता को मजबूत करते हैं, बल्कि कर्मचारियों की नौकरी से संतुष्टि और रखरखाव दर को भी सुधरते हैं।

नीति स्तर पर, सरकार ने 2020 में "जेंडर इक्वालिटी एक्ट" पारित किया, जो कंपनियों को न्यूनतम 30 % महिलाओं को बोर्ड में जगह देने की आवश्यकता रखता है। कई स्टार्ट‑अप्स ने इस दिशा में विशिष्ट ट्रेंनिंग मॉड्यूल तैयार किए हैं, जैसे कि ‘नेतृत्व में महिला’ वर्कशॉप्स, जो प्रबंधकों को लैंगिक पूर्वाग्रह पहचानने और दूर करने में मदद करती हैं। इसके अलावा, रिमोट वर्क और फ़्लेक्सी‑टाईम जैसी प्रैक्टिसेज़ महिलाओं को घर और ऑफिस के बीच बेहतर संतुलन बनाने की सुविधा देती हैं।

फील्ड में वास्तविक पथरीली राहें भी हैं। अक्सर महिलाओं को प्रमोशन के दौरान अनदेखा किया जाता है, या उन्हें कम वेतन के साथ ही समान कार्य सौंपा जाता है। खेल जगत की महिलाओं की सफलता, जैसे भारत की महिला क्रिकेट टीम की जीत, दिखाती है कि जब अवसर मिलते हैं तो परिणाम शानदार होते हैं। ऐसी ही प्रेरणा को कार्यालय में लाने के लिए कंपनियों को पारदर्शी वेतन संरचना और नियमित-performance reviews अपनाने चाहिए।

विविधता के लाभ मात्र आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी हैं। जब महिलाएं निर्णय में भाग लेती हैं, तो कंपनी के उत्पाद और सेवाएँ अधिक व्यापक दर्शकों की जरूरतों को समझ पाते हैं। उदाहरण के तौर पर, फिनटेक कंपनियों ने महिला-उन्मुख लोन प्रोडक्ट लॉन्च करके वित्तीय समावेशिता को बढ़ाया है। इस तरह के प्रोजेक्ट्स में महिलाओं की सहभागिता सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि रणनीतिक एसेट बन जाती है।

आगे बढ़ने के लिए, संस्थाओं को तीन कदम स्पष्ट करने चाहिए: पहला, स्पष्ट लक्ष्य‑निर्धारण—जैसे कि 2025 तक सभी मध्य‑प्रबंधन पदों में 40 % महिलाएं। दूसरा, निरंतर शिक्षण—लीडरशिप ट्रेनिंग, डेटा‑ड्रिवन डीएसटी, और मेन्टर‑मेंटे संबंध। तीसरा, फीडबैक लूप—नियमित सर्वे और ग्रुप डिस्कशन जो सुधार के क्षेत्रों को उजागर करें। इन उपायों को अपनाकर कंपनियां न केवल कानूनी बाध्यताओं को पूरा करेंगी, बल्कि एक अधिक समावेशी और प्रतिस्पर्धी कार्यस्थल भी बनाएंगी।

अब आप इस पेज पर नीचे दी गई खबरों और विश्लेषणों में देखेंगे कि विभिन्न उद्योगों में महिला भागीदारी कैसे विकसित हो रही है, कौन से नीतियां सफल रही हैं, और आगे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यह जानकारी आपको अपनी कंपनी या कैरियर में सही कदम उठाने में मदद करेगी।

28

सित॰

2025

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मुख्यमंत्री सई ने कहा कि बेटी को पढ़ाना पूरी पीढ़ी को शिक्षित बनाता है। भारत में लड़कियों की शैक्षणिक सफलता अहम है, पर कार्यस्थल में उनका प्रतिनिधित्व कम है। सामाजिक रुझानों, विवाह और मातृत्व की बाधाएं इस असंतुलन की प्रमुख वजह हैं। नीति निर्माताओं को संरचनात्मक बाधाएं हटाकर शिक्षित महिलाओं को रोजगार में लाना चाहिए।