जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा: सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पर एक अहम सवाल
जम्मू-कश्मीर की राजनीति इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है. 2019 में अनुच्छेद 370 हटाकर केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. अब, ठीक छह साल बाद, राज्य का दर्जा वापस दिलाने की माँग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई है. इसकी सुनवाई 8 अगस्त को होगी.
कॉलेज टीचर जहूर अहमद भट और समाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने यह याचिका दाखिल की है. इनका तर्क है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में हो रही देरी से संविधान के संघवाद और लोकतंत्र के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. दोनों का कहना है कि पहले राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और फिर विधानसभा चुनाव कराए जाएं, जबकि अभी चुनाव राज्य की बहाली से पहले कराने की योजना है.

संविधान, संघवाद और लोकतंत्र पर बहस
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बार-बार चुनाव टालने और राज्य का दर्जा न लौटाने से जम्मू-कश्मीर के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार पर सीधा असर पड़ता है. संविधान की मूल संरचना में संघवाद और राज्यों की स्वायत्तता को बहुत महत्व दिया गया है. वरिष्ठ वकील गोपाल संकरणारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि लंबे समय तक राज्य का दर्जा न देना लोकतांत्रिक शासन की जड़ों को कमजोर करता है.
दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को सही ठहराया था, लेकिन कोर्ट ने ये भी कहा था कि 'राज्य का दर्जा यथाशीघ्र बहाल किया जाए' और सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव भी कराए जाने हैं. इसके बावजूद, अब तक राज्य की बहाली पर कोई स्पष्ट कदम नहीं उठा है. ऐसे में अदालत के निर्देश का भी क्या असर होगा, यह सवाल लोगों के मन में लगातार उठ रहा है.
राज्य का दर्जा सिर्फ राजनैतिक विषय नहीं है. यह उस क्षेत्र के लोगों की पहचान, उनके अधिकार और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा हुआ मुद्दा है. अनुच्छेद 370 जाने के बाद स्थानीय स्तर पर शासन की प्रक्रिया में लगातार बदलाव देखे गए हैं. आम लोग इस अस्थिरता से परेशान हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी आवाज और प्रतिनिधित्व संसद या प्रशासन तक पहले जैसा नहीं पहुंच रहा.
अब नजरें 8 अगस्त पर टिक गई हैं, जब यह सुप्रीम कोर्ट के सामने फिर से हल होने वाली एक संवेदनशील बहस बनेगी. सवाल यही है कि केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद राज्य की बहाली कब और कैसे होगी? और क्या इससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को वह भरोसा दोबारा मिल पाएगा जो उन्होंने 2019 के पहले महसूस किया था?