10 अप्रैल 2025 को देवघर की सड़कें अचानक शांत हो गईं। फव्वारा चौक से मंदिर तक, बैजनाथुपर चौक से सारवां मोड़ तक — जहां हर दिन बसों की भीड़ शहर को जकड़ लेती थी, वहां अब सिर्फ ऑटो और टोटो की आवाज़ें गूंज रही हैं। देवघर नगर निगम ने शहर के पुराने प्राइवेट बस स्टैंड को बंद करके, बाघमारा में बने इंटर स्टेट बस टर्मिनल (ISBT) को अपनाया। यह नया टर्मिनल, जिसका निर्माण 42 करोड़ रुपये की लागत से हुआ, झारखंड का सबसे बड़ा और आधुनिकतम बस टर्मिनल है। लेकिन जो राहत आशा की गई थी, वो अब एक दोहरा सवाल बन गई है — क्या यह ट्रैफिक की समस्या हल कर रहा है, या बस एक नई बेचैनी बना रहा है?
ट्रैफिक जाम से शहर को मिली राहत, लेकिन यात्री बेचारा
देवघर के शहरी क्षेत्र में प्राइवेट बसों का अनियंत्रित संचालन एक दिनभर का नरक बन गया था। एंबुलेंस अस्पताल नहीं पहुंच पाती थी, स्कूल बसें देर से पहुंचती थीं, और बाबा बैद्यनाथ मंदिर से लौटते श्रद्धालु घंटों फंस जाते थे। देवघर नगर निगम के अनुसार, यह नया टर्मिनल इस जाम को तोड़ने के लिए बनाया गया है। और अब, शहर के भीतर के मार्ग शांत हैं। बाबा बैद्यनाथ मंदिर से जलार्पण के बाद श्रद्धालु अब सीधे बाघमारा ISBT जा सकते हैं — बिना किसी भीड़-भाड़ के। यहां एस्केलेटर, वेटिंग रूम, और फूड कोर्ट की व्यवस्था भी है। रेलवे स्टेशन और बस टर्मिनल के बीच एक नया कनेक्टिविटी नेटवर्क बन रहा है — जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
8 किलोमीटर की दूरी, 100 रुपये का बोझ
लेकिन यहां का नक्शा दूसरा है। बाघमारा ISBT देवघर के मीना बाजार पुराने बस स्टैंड से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। यह दूरी आम आदमी के लिए एक बड़ी बाधा है। मजदूर, स्कूली बच्चे, और बुजुर्ग अब ऑटो या टोटो से टर्मिनल तक पहुंचने के लिए 80 से 100 रुपये अतिरिक्त खर्च कर रहे हैं। एक रोजगारी व्यक्ति, जो रोज 50 रुपये कमाता है, बताता है — "मैं अब दो बार बस से उतरूंगा? पहले घर से ऑटो, फिर टर्मिनल से ऑटो? ये पैसा कहाँ से आएगा?"
बस ऑनर्स एसोसिएशन और स्थानीय व्यापारी अब विरोध की आवाज़ उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह फैसला अचानक लिया गया, और यात्रियों को कोई सूचना नहीं दी गई। एक दिन पहले तक बसें फव्वारा चौक पर थीं, अगले दिन वो बाघमारा में खाली खड़ी थीं। यात्रियों को पता चला तो अखबार के खबर से।
जानकारी की कमी, बुनियादी व्यवस्था का अभाव
गुरुवार को जब बसें बाघमारा से चलने लगीं, तो वहां सिर्फ 3-4 बसें ही उपलब्ध थीं। यात्रियों की संख्या ना के बराबर थी। ऑटो चालकों ने बताया — "हम यहां आए, लेकिन बस नहीं आई। फिर हम लौट गए।" यहां कोई बस शेड्यूल नहीं है। कोई डिजिटल बोर्ड नहीं है। ऑनलाइन बुकिंग की बात तो सिर्फ दफ्तरी दस्तावेज़ में है।
पर्यटकों के लिए यह और भी बुरा है। बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ से आने वाले श्रद्धालु बिल्कुल नहीं जानते थे कि बस स्टैंड बदल गया है। एक बिहार के श्रद्धालु ने कहा — "मैंने बाबा बैद्यनाथ के बाद बस का इंतजार किया — फव्वारा चौक पर। कोई नहीं था। फिर मैं घूमता रहा। एक बच्चे ने बताया — बाघमारा जाओ। वहां तक पहुंचने के लिए मैंने 120 रुपये दिए।"
रोजगार का नया मौका, या बस एक नया अनिश्चितता?
प्रशासन का दावा है कि बाघमारा के आसपास नए दुकानें खुल रही हैं, ऑटो चालकों को नया रोजगार मिल रहा है, और रेल और बस के बीच एक नया बाजार बन रहा है। लेकिन अभी तक यह सिर्फ एक दावा है। किसी ने नहीं देखा कि कौन खुल रहा है। एक बार जब बसें नियमित रूप से चलने लगेंगी, तभी यह सच होगा।
देवघर के एक स्थानीय नगर निगम अधिकारी ने बताया — "हम लोग इसे दो हफ्ते में ठीक कर देंगे। अब बसें अधिक आएंगी। ऑटो के लिए डिस्पेच पॉइंट भी बनाए जाएंगे।" लेकिन ये वादे अब तक लाखों यात्रियों के लिए काफी नहीं हैं। जब आधा शहर जाम में फंसा होता है, तो उसकी राहत का फैसला अचानक नहीं लिया जा सकता।
क्या अगला कदम?
अब तक बाघमारा ISBT एक खाली भवन बना हुआ है — जिसमें एस्केलेटर चल रहे हैं, लेकिन लोग नहीं आ रहे। अगर बसें नियमित नहीं चलेंगी, तो यह टर्मिनल एक बड़ा निवेश का अपव्यय बन जाएगा। लोग अब अपने घरों से बाहर निकलने से पहले दो बार सोचते हैं — क्या मैं यह खर्च कर सकता हूं? क्या बस आएगी?
देवघर के लोग अब न सिर्फ ट्रैफिक के लिए लड़ रहे हैं, बल्कि उन निर्णयों के लिए भी लड़ रहे हैं जो उनकी जिंदगी को बदल रहे हैं — बिना पूछे, बिना सुने।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
बाघमारा ISBT के बारे में यात्रियों को क्यों नहीं बताया गया?
यात्रियों को बस स्टैंड बदलाव की जानकारी सिर्फ अखबारों में दी गई, जबकि रेलवे स्टेशन, बस डिपो और दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई सूचना नहीं दी गई। इसके कारण बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से आए यात्री बिल्कुल भ्रमित रहे। देवघर नगर निगम ने ऑनलाइन पोर्टल, एसएमएस अलर्ट या स्थानीय रेडियो पर कोई अपडेट नहीं दिया।
बसें क्यों नहीं चल रहीं और ऑटो की व्यवस्था क्यों नहीं है?
बाघमारा ISBT पर गुरुवार को सिर्फ 3-4 बसें ही चलीं, जबकि आमतौर पर देवघर से दिनभर में 50 से अधिक बसें चलती हैं। ऑटो चालकों के लिए कोई डिस्पेच पॉइंट या राइड-शेड्यूल नहीं है। यहां तक कि कोई बस आने का समय भी नहीं बताया गया। यह अनियमितता यात्रियों को बार-बार भटकाने का कारण बन रही है।
नए टर्मिनल से रोजगार कैसे बढ़ेगा?
प्रशासन का दावा है कि बाघमारा के आसपास दुकानें खुल रही हैं और ऑटो-चालकों को नया रोजगार मिल रहा है। लेकिन अभी तक कोई आंकड़ा नहीं आया है। एक स्थानीय व्यापारी ने बताया कि उसकी दुकान खुली है, लेकिन लोग नहीं आ रहे। रोजगार का आश्वासन तभी सच होगा जब बसें नियमित रूप से चलेंगी और यात्री लौटेंगे।
क्या यह टर्मिनल बाबा बैद्यनाथ मंदिर के श्रद्धालुओं के लिए फायदेमंद है?
हां, अगर बसें नियमित चलें। अब श्रद्धालु जलार्पण के बाद सीधे बाघमारा ISBT तक जा सकते हैं, बिना शहर के भीतर जाम में फंसे। लेकिन अगर उन्हें ऑटो से 100 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, तो यह लाभ उनके लिए अनुपयुक्त हो जाता है। बैद्यनाथ के श्रद्धालु अक्सर गरीब होते हैं — उनके लिए यह एक नया बोझ है।
क्या देवघर नगर निगम इस समस्या को सुलझाने की योजना बना रहा है?
अधिकारियों ने कहा है कि वे अगले 10-15 दिनों में बस शेड्यूल सुधारेंगे, ऑटो डिस्पेच पॉइंट लगाएंगे, और डिजिटल बोर्ड लगाएंगे। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यात्री अब उनके वादों पर विश्वास नहीं कर रहे। एक यात्री ने कहा — "हमने पहले भी ऐसे वादे सुने हैं। फिर कुछ नहीं हुआ।"
क्या यह टर्मिनल देवघर के लिए भविष्य का निर्णय है?
हां — अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए। एक आधुनिक टर्मिनल शहर की छवि बदल सकता है। लेकिन अगर इसे बिना यात्रियों की जरूरतों को समझे, बिना सूचना के, और बिना जाम के बनाया गया है, तो यह एक नया निर्माण बन जाएगा — न कि एक नया जीवन। यहां की जिंदगी नहीं, बस एक निर्माण का आंकड़ा बन रहा है।