14 नवंबर, 2025 को राजस्थान के बारान जिले के अंटा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ आया। प्रमोद जैन भाया, जो पहले भी तीन बार इसी क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं, चौथी बार विधानसभा में वापसी कर गए। कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मोरपाल सुमन को 15,612 वोटों के बड़े अंतर से हराया। भाया को 69,462 वोट मिले, जबकि सुमन को 53,868 और स्वतंत्र उम्मीदवार नरेश मीणा को 53,740 वोट मिले — यानी बीजेपी और स्वतंत्र उम्मीदवार के बीच बस 128 वोटों का अंतर था। यह त्रिकोणीय संघर्ष एक बड़ी चौंकाने वाली घटना बन गया।
80.21% वोटिंग और एक बड़ा संदेश
इस उपचुनाव में 2,28,264 पंजीकृत मतदाताओं में से 1,83,099 ने अपना वोट दिया — यानी 80.21% वोटिंग दर। यह राजस्थान के इतिहास में उपचुनावों में सबसे अधिक वोटिंग में से एक है। पुरुष मतदाताओं की संख्या 96,141 और महिलाओं की 86,955 थी, जबकि तीन मतदाता ‘अन्य’ श्रेणी में आए। यह आंकड़ा केवल भागीदारी नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था: लोग बदलाव चाहते हैं। वोटिंग दर इतनी ऊंची थी कि यह बीजेपी के लिए एक बड़ी चेतावनी बन गई — खासकर जब उनके दोनों बड़े नेता, भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे, ने इस चुनाव के लिए पूरी शक्ति लगा दी थी।
वसुंधरा राजे का घाव: अंटा क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
अंटा सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं है — यह वसुंधरा राजे के राजनीतिक राज्य का दिल है। यहां से उनके बेटे दुष्यंत सिंह, जो जालौर-बारान लोकसभा के सांसद हैं, ने चुनाव निरीक्षक के रूप में काम किया। राजे ने इस चुनाव को अपनी राजनीतिक उपलब्धि का प्रतीक बना रखा था। जब वोटों की गिनती शुरू हुई, तो उनके चेहरे पर चौंकाने वाला चेहरा दिखा। एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने बताया, “हमने यहां कभी हार नहीं देखी। यह एक अंतर्राष्ट्रीय जैसी गलती है।”
कांग्रेस का नेतृत्व दोबारा साबित हुआ
कांग्रेस के नेता इस जीत को मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के नेतृत्व की पुष्टि मान रहे हैं। अशोक गहलोत, जो राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, ने सोशल मीडिया पर सीधे ट्वीट किया: “मैं अंटा में कांग्रेस की जीत के लिए सभी मतदाताओं का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।” उन्होंने बीजेपी सरकार की नीतियों को भी निशाना बनाया — खासकर ग्रामीण विकास और बेरोजगारी पर।
बीजेपी की गलतियां: वोट बंटन और भ्रम
बीजेपी की हार का मुख्य कारण स्वतंत्र उम्मीदवार नरेश मीणा का उभार था। उनके पास काफी जमीनी समर्थन था — खासकर आदिवासी और छोटे किसानों के बीच। बीजेपी के नेता अब कह रहे हैं कि “हमने एक उम्मीदवार को दो बार बांट दिया।” वसुंधरा राजे के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने नरेश मीणा को बेकार नहीं बनाया, बल्कि उन्हें भूल गए। यह एक ऐसी गलती थी जिसे बीजेपी के लिए 2028 के चुनाव तक याद रखना पड़ेगा।
2028 के लिए राजस्थान की राजनीति बदल रही है
अंटा की जीत ने कांग्रेस को दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में एक मजबूत आधार दिया है — जहां बीजेपी का नियंत्रण पिछले दो दशकों से रहा है। अब कांग्रेस यहां नियमित रूप से कार्यकर्ता भेज रही है और गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याओं को सुन रही है। वहीं, बीजेपी अपने भीतरी विश्लेषण शुरू कर चुकी है। उनके दो नेता, जिन्होंने अंटा के लिए बड़ा दांव लगाया, अब अपने स्थानीय नेतृत्व की समीक्षा कर रहे हैं।
पूरे देश में चुनाव का नक्शा
अंटा की जीत सिर्फ राजस्थान की नहीं, बल्कि पूरे देश के चुनावी नक्शे को बदल रही है। उसी दिन तेलंगाना के जूबिली हिल्स में कांग्रेस ने जीत दर्ज की, जबकि जम्मू-कश्मीर के नागरोटा में बीजेपी ने जीत हासिल की। यह एक स्पष्ट संकेत है कि देश में राजनीति अब और अधिक स्थानीय और व्यक्तिगत हो रही है। जहां कांग्रेस के पास एक अच्छा नेतृत्व है, वहां वह जीत रही है। जहां बीजेपी का नेतृत्व टूट रहा है, वहां वह हार रही है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अंटा विधानसभा क्षेत्र क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
अंटा वसुंधरा राजे के राजनीतिक क्षेत्र का दिल है। यहां से उनके बेटे दुष्यंत सिंह लोकसभा के सांसद हैं और राजे ने इस क्षेत्र को अपनी राजनीतिक विरासत का हिस्सा बनाया है। इसकी हार उनके बीजेपी में नेतृत्व पर सवाल खड़े करती है।
प्रमोद जैन भाया की चौथी बार विधायक बनने की जीत का क्या महत्व है?
भाया एक अनुभवी नेता हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों में अंटा के गरीब और आदिवासी समुदायों के लिए काम किया है। उनकी चौथी जीत यह दर्शाती है कि लोग अनुभव और निष्ठा को प्राथमिकता दे रहे हैं, न कि केवल पार्टी का नाम।
बीजेपी की हार में नरेश मीणा की भूमिका क्या रही?
नरेश मीणा ने बीजेपी के वोटों को 53,740 तक खींच लिया, जिससे सुमन को उनसे सिर्फ 128 वोटों से हारनी पड़ी। यह दर्शाता है कि बीजेपी के भीतर स्थानीय नेतृत्व और जमीनी समर्थन की कमी थी, जिसे उन्होंने नजरअंदाज किया।
2028 के राजस्थान विधानसभा चुनाव पर इस जीत का क्या प्रभाव पड़ेगा?
कांग्रेस के लिए यह जीत एक नया आत्मविश्वास देती है। अब वह दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में अपनी संगठनात्मक ताकत बढ़ाएगी। बीजेपी को अपने नेतृत्व में सुधार करना होगा, वरना 2028 में उनका राज्य खोने का खतरा है।
11 टिप्पणि
Ravi Kumar
नवंबर 16, 2025 AT 14:52अंटा में जो हुआ वो सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि एक जनता का सीधा संदेश था। भाया ने जमीन से जुड़कर काम किया, बस टीवी पर नहीं। लोगों ने देखा कि कौन असली और कौन बस नाम लेकर आया। बीजेपी ने जो गलती की, वो ये कि उन्होंने आदिवासी और छोटे किसानों को भूल दिया। अब तो ये बात सबके सामने है।
rashmi kothalikar
नवंबर 18, 2025 AT 12:25ये सब बाहरी लोगों की फैक्ट फिक्शन है। वसुंधरा राजे ने जो किया वो अभी तक किसी ने नहीं किया। अंटा का ये नतीजा कांग्रेस के धोखे का नतीजा है। उन्होंने बस नरेश मीणा को बनाया ताकि बीजेपी का वोट बंट जाए। ये गंदा खेल है।
Gowtham Smith
नवंबर 20, 2025 AT 11:48मैं यहां डेटा के साथ बात करता हूं। बीजेपी के लिए ये एक नेगेटिव बायस है। वोटिंग डेंसिटी 80.21% है, लेकिन जब तीन विभाजित उम्मीदवारों में से दो के बीच फर्क सिर्फ 128 वोट है, तो ये एक सिस्टमिक फेलियर है। नेटवर्क एफेक्ट फेल हुआ। लोकल लीडरशिप का डिस्कनेक्ट इसका मुख्य कारण है।
Shivateja Telukuntla
नवंबर 21, 2025 AT 21:05कांग्रेस की जीत अच्छी है, लेकिन अंटा के लोगों की भावनाएं भी देखनी चाहिए। भाया ने लंबे समय तक यहां काम किया। उनके लिए ये बस एक चुनाव नहीं, बल्कि एक जीवन का समर्पण था। बीजेपी को अगर ये नहीं समझा, तो वो दोबारा गलती करेंगे।
Muneendra Sharma
नवंबर 21, 2025 AT 23:02मैंने अंटा के एक दोस्त से बात की। उसने बताया कि भाया हर हफ्ते एक गांव जाते हैं, बच्चों को बुक्स देते हैं, बुजुर्गों के लिए दवाइयां लाते हैं। ये नहीं कि बस चुनाव से एक महीने पहले आए और फिर गायब। लोग इसे देख रहे हैं। बीजेपी ने बस टीवी पर नाम चलाया।
pritish jain
नवंबर 23, 2025 AT 15:10यहां जो घटना हुई है, वह एक सामाजिक अनुभव का दर्शन है। लोकतंत्र की शक्ति इसी में है कि जब एक नेता अपने क्षेत्र के लिए जीवन जीता है, तो उसकी निष्ठा का प्रतिफल वोटों में आता है। यह एक निर्माणात्मक विरोध नहीं, बल्कि एक अभिव्यक्ति है। बीजेपी के लिए यह एक आध्यात्मिक चेतावनी है - शक्ति के लिए नहीं, लोगों के लिए आना होगा।
Kisna Patil
नवंबर 25, 2025 AT 15:10ये जीत कांग्रेस के नेतृत्व की नहीं, बल्कि अंटा के गरीबों की जीत है। जब एक आदिवासी लड़का अपने घर से दूर नहीं जाता, लेकिन अपने गांव के लिए लड़ता है - तो उसकी जीत हम सबकी जीत है। बीजेपी को अपने अधिकारियों को गांवों में भेजना चाहिए, न कि टीवी पर बोलने के लिए।
Anand Itagi
नवंबर 25, 2025 AT 17:31भाया की चौथी बार जीत बहुत बड़ी बात है लेकिन ये भी ध्यान रखना चाहिए कि बीजेपी के दो नेता एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे और उन्होंने एक आम आदमी को बहुत ज्यादा वोट दे दिए और अब वो भी बीजेपी के खिलाफ हो गए और अब वो भी नए नेता बन गए
Sumeet M.
नवंबर 26, 2025 AT 17:46ये सब गंदगी है! बीजेपी को यहां हारना था क्योंकि वो लोगों को नहीं जानते! भाया ने तो अपने बच्चों को भी बचाने के लिए जमीन पर चलकर काम किया! और वसुंधरा राजे? वो तो बस अपने नाम के लिए आई! अब ये लोग जो चुनाव जीत गए हैं वो तो बस बेवकूफ लोग हैं जो बस नाम देखकर वोट दे देते हैं! ये देश का अंत हो रहा है!
Shailendra Thakur
नवंबर 28, 2025 AT 12:58एक चुनाव में जीत या हार नहीं, बल्कि दो अलग दृष्टिकोण आमने-सामने हुए। एक ने जमीन से जुड़कर काम किया, दूसरे ने नाम से लड़ा। अब लोगों ने अपना फैसला ले लिया। अगला चुनाव यही बात दोहराएगा - कौन लोगों के साथ है, और कौन लोगों के ऊपर है।
Ravi Kumar
नवंबर 29, 2025 AT 03:55भाया की जीत ने बीजेपी के लिए एक संकेत दिया है। अगर तुम लोगों को भूल जाओगे, तो लोग तुम्हें भूल जाएंगे।