क्या आप कभी सोचते हैं कि पोप फ्रांसिस कौन हैं? वे सिर्फ़ एक धार्मिक नेता नहीं, बल्कि कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं। जन्म 1936 में अर्जेंटीना के बर्गो शहर में हुआ और उनका असली नाम जॉर्ज मारियो बरागो था। छोटे से गाँव में पले-बढ़े उन्होंने सादगी और सेवा को अपने जीवन का मुख्य सिद्धांत बना लिया।
जवानी में ही फ्रांसिस ने येशु मसीह की सेवाकार्य को अपनाया। 1969 में वे जेसुइट ऑर्डर में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने शिक्षा और सामाजिक न्याय पर काम किया। यह अनुभव उनके बाद के कार्यों का आधार बना। 2013 में पोप बेंजामिन XVI के पदत्याग के बाद फ्रांसिस को पोप चुना गया। तब से उनका मिशन ‘पर्याप्ती’ (सहयोग) और ‘समावेशिता’ पर केंद्रित रहा है।
फ़्रांसिस ने कई बार बताया कि धर्म को राजनीति से अलग नहीं होना चाहिए, बल्कि लोगों की समस्याओं को हल करने में मदद करनी चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज़ उठाई और ‘लैटिनो अमर’ जैसे दस्तावेज़ों में पर्यावरणीय जिम्मेदारी पर बल दिया। उनके भाषण अक्सर साधारण भाषा में होते हैं, जिससे आम लोग भी समझते हैं कि चर्च क्या कहना चाहता है।
साथ ही, वे शरणार्थियों और प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करते रहे हैं। कई देशों ने उनकी बात सुनकर इमिग्रेशन नीतियों को बदलने का फैसला किया। यह दिखाता है कि एक पोप भी सामाजिक परिवर्तन में कितना बड़ा रोल निभा सकता है।
उनकी यात्रा केवल धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और विज्ञान के साथ जुड़ी हुई है। हाल ही में उन्होंने वेटिकन में ‘डिजिटल बाइबल’ का प्रोजेक्ट शुरू किया, जिससे युवा वर्ग को तकनीक से जोड़ना आसान हुआ।
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पोप फ्रांसिस ने एक निजी बैठक में समलैंगिक पुरुषों के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद माफी मांगी है। खबर के अनुसार, उन्होंने समलैंगिक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों को पुरोहित बनने से रोकने की बात कही थी। वेटिकन ने कहा कि उनका उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं था।
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