माँ कूष्माण्डा कौन हैं? – इतिहास और स्वरूप
चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन हम Maa Kushmanda को याद करते हैं, जो दुर्गा के आठ‑भुजारूप में से एक है। उनका नाम संस्कृत के तीन शब्दों ‘कु‑उष्म‑आँड’ से आया है, जिसका मतलब है ‘छोटा‑ऊर्जा‑अण्ड’, यानी वह वही अण्ड है जिससे ब्रह्मांड का सृजन हुआ। पुराणों में बताया गया है कि विष्णु‑शेवर की ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए कुश्माण्डा ने सूर्य के केंद्र में बसेर किया, जिससे पूरे विश्व में उजाला और जीवन का संचार हो सका।
आश्चर्यजनक बात यह है कि वह सिंहनी पर सवार होती हैं और उनके पास आठ हाथ होते हैं। दाएँ हाथ में कमण्डल, धनुष, बाण और कमल, जबकि बाएँ हाथ में अमृत कलश, जप-माला, गदा और चक्र रखा रहता है। इस अद्भुत चित्रण से यह स्पष्ट होता है कि वह न केवल सृष्टि की रचना करती हैं, बल्कि उसकी रक्षा भी करती हैं।
पूजा विधि, रंग‑रिवाज और विशेष अनुष्ठान
पूजा की तैयारी सुबह से ही शुरू होती है। नहाकर साफ‑सुथरे कपड़े पहनें, फिर गंगाजल से स्थल को पवित्र करें। मिट्टी की थाली में तीन परतें मिट्टी डालें, उसके ऊपर सात या नौ अनाज के बीज (सप्तधान्य/नवधान्य) बिखेरें और थोड़ा पानी छिड़कें। इस नीचे थोड़ा सा ‘चक्र’ बन जाता है, जो कूष्माण्डा की ऊर्जा को आकर्षित करता है।
कुलश तैयार करने में गंगा जल, सुपारी, सिक्के, अक्षत और धृवा घास डालें। पाँच पन्ने के आम के पत्ते कलश के गर्दन के चारों ओर रखें और ऊपर से नारियल रखें। कलश को सम्मान देते हुए दीपक जलाएँ, फिर देवी को लाल और पीले रंग के फूल चढ़ाएँ। लाल कपड़ा, सींग की माला, सिंदूर, काजल और बिंदी को सजावट के रूप में रखें – ये सब कूष्माण्डा की पसंदीदा वस्तुएँ हैं।
पूजा के मुख्य चरणों में प्रथम में कलश की पूजा, फिर तेल से बने दीये को घी से जलाएँ। ताज़ा फूल हाथ में लेकर देवी को प्रणाम करें, फिर वेरमिलियन (सिंदूर) और हार के साथ अर्पण दें। फल, मेवा, मीठा पान, लौंग, इलायची जैसी पाँच मौसमी फलों को विशेष रूप से प्रस्तुत करें। इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती या कम से कम कवच, अर्गला और कैलाक का पाठ करें। मंत्र पढ़ते समय मन को शांत रखें और ध्वनि को पूरी भावना से निकालें। अंत में आरती गाते हुए अपने इच्छाओं को लिखें, फिर प्रसाद वितरित करें।
रंग की बात करें तो इस दिन पीला और लाल दोनों रंग अत्यधिक शुभ माने जाते हैं। पीला हृदय चक्र को संतुलित करता है, जबकि लाल उत्साह और ऊर्जा को बढ़ाता है। इस कारण से कई लोग अपने कपड़ों में इन दोनों रंगों को मिलाते हैं।
विशेष प्रसाद में मालपुना, हलवा, दही को प्रमुखता दी जाती है। इनका अर्पण करने से देवी का क Richardson.।
भक्ति में गहराई लाने के लिए मुख्य मंत्र है – ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः। इसके अलावा विस्तृत मंत्र जिसमें ‘सुरासम्पूर्ण कलशं’ आदि का उच्चारण होता है, इसे तीन बार जलन में दोहराएँ।
राशियों के अनुसार उपाय भी बताए गए हैं। मेष (Aries) जातकों को लाल फूल और सिंदूर के साथ कूष्माण्डा को समर्पित करना चाहिए, साथ ही पूजा के बाद ध्यान‑ध्यान से मंत्र जपें। यह उन्हें हृदय‑चक्र को शुद्ध करने और मन की बेचैनी को दूर करने में मदद करता है।
नवरात्रि के दौरान उपवास करने वाले लोग शाम को आरती के बाद हल्का सत्त्विक भोजन करें। इस दौरान दाल, चावल, सब्जी और फल जैसी शुद्ध सामग्री का सेवन स्वास्थ्य और आत्मा दोनों को पोषित करता है।
कूष्माण्डा की पूजा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह उदासी, भय और अतीत के दर्द को दूर करके जीवन में नई रोशनी लाती है। उसकी एक मिश्री मुस्कान में ही संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति निहित है; इस ऊर्जा को महसूस कर आप अपनी रचनात्मक शक्ति को पुनः जाग्रत कर सकते हैं।