अगर आप भारतीय राजनीति देखते हैं तो असदुद्दीन ओवैसि का नाम जरूर सुना होगा। वह AIMIM (ऑल इंडिया मुस्लिम लीग) के प्रमुख नेता हैं और भारत की संसद में बहु‑बार चुने गए सांसद भी हैं। उनकी बातों को अक्सर मीडिया बड़े उत्साह से कवरेज देता है, चाहे वह चुनावी रणनीति हो या सामाजिक मुद्दे। इस लेख में हम उनके राजनीतिक सफर, हालिया बयान और जनता पर उनका असर समझेंगे।
ओवैसि ने राजनीति में कदम रखा जब उनके पिता अली शफ़ी ओवैसि भी सक्रिय थे। 1999 के आम चुनाव में पहली बार वह दिल्ली से सांसद बने और तब से कई बार जीत हासिल की है। उनका मुख्य आधार तेलंगाना, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में है जहाँ मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है। उन्होंने हमेशा अपने क्षेत्र की समस्याओं को केंद्र सरकार तक पहुँचाने की कोशिश की है, चाहे वह रोजगार, शिक्षा या सुरक्षा से जुड़ी हों।
पिछले कुछ महीनों में ओवैसि ने कई बड़े मुद्दों पर अपनी राय दी है। उन्होंने वक्फ सुधार विधेयक को मुस्लिम संपत्ति के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने वाला बताया, जबकि विपक्षी पार्टियों ने इसे धार्मिक हस्तक्षेप कहा। इसी दौरान उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि अगर सरकार सामाजिक असमानता को नहीं सुलझाएगी तो दंगे‑झगड़े बढ़ेंगे। इस बयान को कई मीडिया हाउस ने हाईलाइट किया और सोशल मीडिया पर चर्चा का बिंदु बना।
एक और महत्वपूर्ण खबर में, उन्होंने संसद में एक प्रश्न उठाया कि क्या भारतीय सेना के भर्ती नियमों में सभी वर्गों को बराबर अवसर मिल रहा है। यह सवाल उनके लिए खास था क्योंकि वे चाहते हैं कि हर समुदाय को समान मान्यता मिले। इस पर कुछ राजनेताओं ने उनका समर्थन किया जबकि अन्य ने इसे राजनीति का खेल कहा।
ओवैसि अक्सर युवा नेताओं से कहते हैं कि उन्हें अपने मतदाता वर्ग की वास्तविक जरूरतों को समझना चाहिए, न कि केवल वोट पाने के लिए वादे बनाने चाहिए। उनके इस दृष्टिकोण को कई लोगों ने सराहा और उन्होंने कई छोटे‑छोटे गाँव में जाकर सीधे जनसम्पर्क किया।
इन सबके अलावा, उनका सामाजिक कार्य भी काबिले‑ध्यान है। ओवैसि के तहत कई शैक्षिक संस्थान, अस्पताल और कौशल विकास केंद्र स्थापित किए गए हैं। ये संस्थान खास तौर पर वंचित वर्गों को मदद करते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है।
संक्षेप में कहा जाए तो असदुद्दीन ओवैसि एक ऐसे नेता हैं जो अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं और अपने समर्थन आधार के लिए ठोस काम भी किया है। चाहे आप उनके विचारों से सहमत हों या नहीं, उनकी गतिविधियाँ भारतीय राजनीति को विविध बनाती हैं और कई मुद्दे सामने लाती हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। यदि आप इनके बारे में और गहराई से जानना चाहते हैं तो देशीआर्ट समाचार पर नई‑नई ख़बरें देखें।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने 18वीं लोकसभा में शपथग्रहण के बाद 'जय फिलिस्तीन' के नारे के साथ विवाद खड़ा कर दिया। हैदराबाद से पुन: निर्वाचित ओवैसी ने उर्दू में शपथ ली और 'जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन' के साथ अपनी शपथ संपन्न की, जिससे भाजपा सांसद नाराज हो गए। अध्यक्ष राधा मोहन सिंह ने आपत्तिजनक नारे को रिकार्ड से हटाने की घोषणा की परन्तु भाजपा सांसदों का विरोध जारी रहा।
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