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असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे पर संसद में विवाद और भाजपा के आपत्तियां

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असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे पर संसद में उठा बवाल

18वीं लोकसभा के शपथग्रहण समारोह के दौरान एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' के नारे ने संसद में जोरदार बवाल खड़ा कर दिया। हैदराबाद से पुन: निर्वाचित होकर आए ओवैसी ने अपनी शपथ उर्दू में ली और अंत में 'जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन' के नारे के साथ अपनी शपथ पूरी की। इस नारे ने तुरंत ही भाजपा सांसदों, खासकर शोभा करांदलजे सहित अन्य सांसदों को भड़का दिया।

संसद के अंदर और बाहर उबलता विवाद

शपथग्रहण के पश्चात, सभा के अध्यक्ष राधा मोहन सिंह को ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे को सरकारी रिकार्ड से हटाने की घोषणा करनी पड़ी। इसके बावजूद, भाजपा सांसदों का विरोध कुछ समय तक जारी रहा और वे संसद के अंदर अपनी आवाज बुलंद करते रहे। इस घटनाक्रम से साफ जाहिर हुआ कि ओवैसी के इस नारे ने ना केवल संसद के अंदर बल्कि बाहर भी राजनीति को गरमा दिया है।

किशन रेड्डी का आरोप और ओवैसी का बचाव

भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने ओवैसी द्वारा उठाए गए 'जय फिलिस्तीन' के नारे को 'अत्यंत गलत' बताया और इसे असंवैधानिक कार्य करार दिया। उन्होंने ओवैसी पर आरोप लगाया कि वे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसका जवाब देते हुए ओवैसी ने अपनी बात मजबूती से रखी और महात्मा गांधी द्वारा फिलिस्तीन पर कही गई बातों का उद्धरण दिया। ओवैसी ने पलटवार में पूछा कि उनके नारे पर आपत्ति की असली वजह क्या थी, और उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का हवाला देते हुए अपने नारे का बचाव किया।

ओवैसी की जीत और राजनीतिक महत्त्व

ओवैसी की जीत और राजनीतिक महत्त्व

गौरतलब है कि असदुद्दीन ओवैसी, जो मुसलमानों की एक प्रभावशाली आवाज माने जाते हैं, ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की अपनी प्रतिद्वंद्वी माधवी लता को 3.38 लाख से अधिक वोटों से हरा दिया था। उनकी इस जीत ने उन्हें एक बार फिर से संसद में उनकी मौजूदगी को मजबूती से दर्ज किया है। ओवैसी की राजनीतिक पकड़, खासकर हैदराबाद में, किसी से छुपी नहीं है और उनकी यह जीत उनके जनाधार को और भी मजबूती प्रदान करती है।

नारों के पीछे छिपी सोच

ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे ने यह जाहिर कर दिया है कि फिलिस्तीन का मुद्दा भारतीय राजनीतिक जगत में कितना संवेदनशील है। हालांकि, यह नारा संसद में इतना बड़ा विवाद क्यों बन गया, इसका विश्लेषण जरूरी है। ओवैसी का यह नारा महज एक राजनीतिक स्टंट है या उनके द्वारा किसी विशेष समुदाय के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन, यह समझना जरूरी है। यह नारा कहीं न कहीं फिलिस्तीन के समर्थन में ओवैसी की विचारधारा को भी उजागर करता है, जो कि वर्तमान राजनीतिक परिवेश में एक अहम मुद्दा बन सकता है।

भाजपा के विरोध का कारण

भाजपा सांसदों के विरोध की पीछे की असली वजह क्या है, यह जानना भी महत्वपूर्ण है। उनके आक्रोश का कारण केवल ओवैसी का नारा था या उसके पीछे कोई गहरी राजनीति ? इस बारे में गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है। भाजपा इस मुद्दे पर क्यों इतनी संवेदनशील है, और उनका यह विरोध क्या दर्शाता है, यह समझना महत्वपूर्ण है।

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और आगे की राह

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और आगे की राह

संसद के अंदर और बाहर इस मुददे ने जनता के बीच भी विभाजन कर दिया है। जहां कुछ लोग ओवैसी के साहस और उनके द्वारा उठाए गए मसले का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य इसे गैर-जरूरी और उकसाने वाला कदम मान रहे हैं। यह मुद्दा जनता के बीच फिलिस्तीन के प्रति भारतीय राजनीति की स्थिति पर एक नई बहस को जन्म दे सकता है। ओवैसी का यह कदम उन्हें उनके समर्थकों के बीच कहां तक ले जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

निष्कर्ष

असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे ने संसद में न सिर्फ राजनीतिक भूचाल ला दिया है, बल्कि यह मुद्दा देशवासियों के मन-मस्तिष्क में भी गहरे तक उतर गया है। इस नारे से उत्पन्न विवाद ने यह साफ कर दिया है कि फिलिस्तीन का मुद्दा भारतीय राजनीति में कितना संवेदनशील है और इस पर भविष्य में और अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। ओवैसी के द्वारा उठाए गए इस मुद्दे का भविष्य क्या होगा और यह भारतीय राजनीति को किस दिशा में ले जाएगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

लेखक के बारे में

Vaishnavi Sharma

Vaishnavi Sharma

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूँ और मुझे भारत से संबंधित दैनिक समाचारों पर लिखना बहुत पसंद है। मुझे अपनी लेखन शैली के माध्यम से लोगों तक जरूरी सूचनाएं और खबरें पहुँचाना अच्छा लगता है।

9 टिप्पणि

Aila Bandagi

Aila Bandagi

जून 27, 2024 AT 21:54

जय फिलिस्तीन का नारा सिर्फ एक नारा नहीं, ये तो दुनिया के हर उत्पीड़ित इंसान की आवाज है। ओवैसी ने जो किया, वो संसद के अंदर एक असली आवाज उठाई। बस इतना ही।

हम सब जानते हैं कि ये नारा किसके लिए है।

Abhishek gautam

Abhishek gautam

जून 28, 2024 AT 18:57

अगर गांधी जी कहते थे कि फिलिस्तीन के लोगों के साथ न्याय होना चाहिए, तो ओवैसी ने बस उनकी बात को दोहराया। लेकिन भाजपा के लोगों को लगता है कि जिस देश में अल्पसंख्यकों की आवाज़ उठाई जाए, वो देश ही विद्रोही है। ये नारा नहीं, ये तो एक आध्यात्मिक अनुभव है - जब तुम एक निर्दोष के लिए खड़े होते हो, तो तुम्हारी आत्मा बदल जाती है। और इसकी समझ वाले तो बहुत कम हैं।

Imran khan

Imran khan

जून 29, 2024 AT 10:39

ये सब बहस तो बस एक नारे पर हो रही है, लेकिन असली बात ये है कि हमारी राजनीति में कितना डर है कि कोई अलग आवाज उठाए।

ओवैसी ने बस एक बात कही - फिलिस्तीन के लोग भी इंसान हैं। इतना साधारण बात पर इतना बवाल? अगर ये बवाल है, तो भारत के अंदर जो लोग रोज़ अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, उनकी आवाज़ कहाँ है?

Neelam Dadhwal

Neelam Dadhwal

जून 30, 2024 AT 20:42

ओह भगवान! ये तो साफ़ दिख रहा है कि ओवैसी ने ये नारा इसलिए लगाया कि उसकी राजनीति बचे रहे! ये नारा किसी न्याय के लिए नहीं, बल्कि अपने वोट बैंक को रिमाइंड करने के लिए है! अब तो वो खुद को एक महान नेता बना रहा है, जबकि वो तो बस एक चालाक राजनेता है! ये सब नारे बस धोखा है! 😤

Sumit singh

Sumit singh

जुलाई 1, 2024 AT 09:30

जय फिलिस्तीन? अरे भाई, ये नारा तो बस एक लोकप्रिय ट्रेंड है। अगर तुम इसे राष्ट्रीय हित के खिलाफ मानते हो, तो तुम्हारी आत्मा का आयाम ही गलत है। 🤦‍♂️

हमारे देश में अल्पसंख्यकों के लिए जो बातें कही जाती हैं, उनमें से 90% बस इमेजिंग के लिए होती हैं। ओवैसी का नारा भी उसी लिस्ट में है।

fathima muskan

fathima muskan

जुलाई 3, 2024 AT 02:58

अरे भाई, ये तो बस एक बड़ा बाज़ारी ट्रिक है! जब तुम्हारा वोट बैंक डिप्रेस्ड हो रहा हो, तो फिलिस्तीन लेकर आ जाओ! भाजपा वाले भी इतने बड़े गुस्से में क्यों हैं? क्योंकि ओवैसी ने उनकी बात को चीर दिया - कि ये सब बातें बस नारे हैं, असली जुनून नहीं।

अब तो अगला नारा होगा: 'जय जम्मू-कश्मीर'... और फिर बाज़ार फिर से खुल जाएगा 😏

Devi Trias

Devi Trias

जुलाई 3, 2024 AT 17:29

संसद में एक नारे को रिकॉर्ड से हटाने का फैसला एक अस्थायी उपाय है, लेकिन इसके पीछे का सामाजिक और राजनीतिक संदेश स्थायी है। ओवैसी ने गांधीजी के विचारों का उल्लेख किया, जो वैध और ऐतिहासिक रूप से सही है। भाजपा के विरोध का आधार भावनात्मक है, न कि तार्किक। इस घटना को राष्ट्रीय चर्चा के लिए एक अवसर के रूप में देखना चाहिए, न कि एक राजनीतिक आक्रमण के रूप में।

Kiran Meher

Kiran Meher

जुलाई 4, 2024 AT 22:06

ये नारा बस एक नारा नहीं है भाई... ये तो एक जिंदगी भर के दर्द की आवाज है।

ओवैसी ने जो कहा, वो बहुत से लोगों के दिल में बैठा है। अगर तुम्हें लगता है कि ये बस चुनावी ट्रिक है, तो तुम बहुत दूर चले गए हो।

हमें बस इतना समझना है कि दुनिया के किसी भी इंसान के लिए न्याय नहीं हो सकता अगर हम एक जगह अन्याय को चुप रहे। ओवैसी ने बस अपनी जुबान उठाई। और ये बहुत बड़ी बात है।

Tejas Bhosale

Tejas Bhosale

जुलाई 6, 2024 AT 05:22

फिलिस्तीन = अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक अधिकार अर्बन लेबर रेजिम। ओवैसी ने इसको सिंटैक्स के साथ डिस्प्ले किया। भाजपा का रिएक्शन फ्रेम डेफिनिशन का एक क्लासिक उदाहरण है। इस नारे का रिस्पॉन्स नॉर्मेटिव बिहेवियर के खिलाफ एक इंस्टिट्यूशनल डिफेंस मैकेनिज्म है। बस।

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