असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे पर संसद में विवाद और भाजपा के आपत्तियां

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26

जून

2024

असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे पर संसद में उठा बवाल

18वीं लोकसभा के शपथग्रहण समारोह के दौरान एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' के नारे ने संसद में जोरदार बवाल खड़ा कर दिया। हैदराबाद से पुन: निर्वाचित होकर आए ओवैसी ने अपनी शपथ उर्दू में ली और अंत में 'जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन' के नारे के साथ अपनी शपथ पूरी की। इस नारे ने तुरंत ही भाजपा सांसदों, खासकर शोभा करांदलजे सहित अन्य सांसदों को भड़का दिया।

संसद के अंदर और बाहर उबलता विवाद

शपथग्रहण के पश्चात, सभा के अध्यक्ष राधा मोहन सिंह को ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे को सरकारी रिकार्ड से हटाने की घोषणा करनी पड़ी। इसके बावजूद, भाजपा सांसदों का विरोध कुछ समय तक जारी रहा और वे संसद के अंदर अपनी आवाज बुलंद करते रहे। इस घटनाक्रम से साफ जाहिर हुआ कि ओवैसी के इस नारे ने ना केवल संसद के अंदर बल्कि बाहर भी राजनीति को गरमा दिया है।

किशन रेड्डी का आरोप और ओवैसी का बचाव

भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने ओवैसी द्वारा उठाए गए 'जय फिलिस्तीन' के नारे को 'अत्यंत गलत' बताया और इसे असंवैधानिक कार्य करार दिया। उन्होंने ओवैसी पर आरोप लगाया कि वे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसका जवाब देते हुए ओवैसी ने अपनी बात मजबूती से रखी और महात्मा गांधी द्वारा फिलिस्तीन पर कही गई बातों का उद्धरण दिया। ओवैसी ने पलटवार में पूछा कि उनके नारे पर आपत्ति की असली वजह क्या थी, और उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का हवाला देते हुए अपने नारे का बचाव किया।

ओवैसी की जीत और राजनीतिक महत्त्व

ओवैसी की जीत और राजनीतिक महत्त्व

गौरतलब है कि असदुद्दीन ओवैसी, जो मुसलमानों की एक प्रभावशाली आवाज माने जाते हैं, ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की अपनी प्रतिद्वंद्वी माधवी लता को 3.38 लाख से अधिक वोटों से हरा दिया था। उनकी इस जीत ने उन्हें एक बार फिर से संसद में उनकी मौजूदगी को मजबूती से दर्ज किया है। ओवैसी की राजनीतिक पकड़, खासकर हैदराबाद में, किसी से छुपी नहीं है और उनकी यह जीत उनके जनाधार को और भी मजबूती प्रदान करती है।

नारों के पीछे छिपी सोच

ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे ने यह जाहिर कर दिया है कि फिलिस्तीन का मुद्दा भारतीय राजनीतिक जगत में कितना संवेदनशील है। हालांकि, यह नारा संसद में इतना बड़ा विवाद क्यों बन गया, इसका विश्लेषण जरूरी है। ओवैसी का यह नारा महज एक राजनीतिक स्टंट है या उनके द्वारा किसी विशेष समुदाय के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन, यह समझना जरूरी है। यह नारा कहीं न कहीं फिलिस्तीन के समर्थन में ओवैसी की विचारधारा को भी उजागर करता है, जो कि वर्तमान राजनीतिक परिवेश में एक अहम मुद्दा बन सकता है।

भाजपा के विरोध का कारण

भाजपा सांसदों के विरोध की पीछे की असली वजह क्या है, यह जानना भी महत्वपूर्ण है। उनके आक्रोश का कारण केवल ओवैसी का नारा था या उसके पीछे कोई गहरी राजनीति ? इस बारे में गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है। भाजपा इस मुद्दे पर क्यों इतनी संवेदनशील है, और उनका यह विरोध क्या दर्शाता है, यह समझना महत्वपूर्ण है।

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और आगे की राह

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और आगे की राह

संसद के अंदर और बाहर इस मुददे ने जनता के बीच भी विभाजन कर दिया है। जहां कुछ लोग ओवैसी के साहस और उनके द्वारा उठाए गए मसले का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य इसे गैर-जरूरी और उकसाने वाला कदम मान रहे हैं। यह मुद्दा जनता के बीच फिलिस्तीन के प्रति भारतीय राजनीति की स्थिति पर एक नई बहस को जन्म दे सकता है। ओवैसी का यह कदम उन्हें उनके समर्थकों के बीच कहां तक ले जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

निष्कर्ष

असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे ने संसद में न सिर्फ राजनीतिक भूचाल ला दिया है, बल्कि यह मुद्दा देशवासियों के मन-मस्तिष्क में भी गहरे तक उतर गया है। इस नारे से उत्पन्न विवाद ने यह साफ कर दिया है कि फिलिस्तीन का मुद्दा भारतीय राजनीति में कितना संवेदनशील है और इस पर भविष्य में और अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। ओवैसी के द्वारा उठाए गए इस मुद्दे का भविष्य क्या होगा और यह भारतीय राजनीति को किस दिशा में ले जाएगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

लेखक के बारे में

स्नेहा वर्मा

स्नेहा वर्मा

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूँ और मुझे भारत से संबंधित दैनिक समाचारों पर लिखना बहुत पसंद है। मुझे अपनी लेखन शैली के माध्यम से लोगों तक जरूरी सूचनाएं और खबरें पहुँचाना अच्छा लगता है।

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