23
अप्रैल
2025

जलवायु परिवर्तन पर राज्य का पहला बड़ा मंच
मध्य प्रदेश ने 28 अक्टूबर 2024 को भोपाल में पहली बार राज्यस्तरीय प्री-कॉप (Conference of Parties) जलवायु विचार-विमर्श का आयोजन किया। इस बैठक का मकसद था राज्य की जलवायु रणनीतियों को मध्य प्रदेश सरकार के एक्शन प्लान और देश के राष्ट्रीय जलवायु संकल्पों (NDCs) के साथ जोड़ना। जानकारों का मानना है कि जब तक राज्य स्तर पर खास तौर पर काम नहीं होगा, भारत अपने नेट-जीरो लक्ष्यों को छू नहीं सकता। एक ही मंच पर कृषि, ऊर्जा, शिक्षा, रिसर्च, उद्योग और एनजीओ से जुड़े विशेषज्ञों के आने से बातचीत बेहद व्यावहारिक रही।
अक्सर जलवायु बहस राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सीमित रह जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश की यह पहल खास इसलिए रही क्योंकि इसमें स्थानीय जरूरतों और जमीन पर होने वाले बदलावों को केंद्र में रखा गया। कृषि विभाग के अधिकारी, पर्यावरण संस्थाओं के प्रतिनिधि, औद्योगिक जगत और निजी क्षेत्र के नेताओं ने खुलकर अपनी चुनौतियां, समाधान और सुझाव साझा किए।

कृषि, ऊर्जा और नीति में बदलाव की जरूरतें
मध्य प्रदेश में कृषि बड़े पैमाने पर जलवायु जोखिमों के घेरे में है। बीते सालों में बार-बार सूखा पड़ना और कभी-कभी बाढ़ आना किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गए हैं। ऐसे में “राज्य कार्रवाई योजना” (SAPCC) को फिर से तैयार किया गया है, जिसमें मौसम की मार से जूझने के रोडमैप पर विस्तार से चर्चा हुई। इसमें बेमौसम बारिश, बदलता तापमान और सिंचाई का संकट जैसे मुद्दे शामिल रहे। विशेषज्ञों ने कहा कि अगर किसान पारंपरिक खेती को छोड़ टिकाऊ तकनीकों और जलवायु-फ्रेंडली तरीकों को अपनाते हैं, तो ही वे इन जोखिमों से निपट पाएंगे। इसी कड़ी में, सरकार ने ज्यादा से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती और जल संरक्षण तकनीकों से जोड़ने पर जोर दिया।
ऊर्जा सेक्टर की बात करें, तो मध्य प्रदेश में बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा अब भी कोयले जैसे परंपरागत स्रोतों पर निर्भर है। बैठक में जोर दिया गया कि अगर वाकई ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करनी है, तो सौर, पवन जैसी स्वच्छ ऊर्जा को तेजी से अपनाना होगा। ये बदलाव सरकार और निजी कंपनियों दोनों के लिए बड़ी चुनौती हैं, खास तौर पर तब, जब ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही हो। इसमें बिजली कंपनियों को अपने पुराने ढांचों को बदलना, स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना और नई टेक्नोलॉजी अपनाना पड़ेगा।
एक बड़ा मुद्दा निजी सेक्टर और किसानों के बीच तालमेल का भी था। विशेषज्ञों ने महसूस किया कि अलग-अलग स्तर पर चल रही कोशिशें तब ही असरदार होंगी जब नीति-निर्माण में दोनों की बातों को जगह मिले। आज स्थानीय अनुभव और वैज्ञानिक विशेषज्ञता का मेल होना बेहद जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, एक तरफ किसान यदि पौधों के बदलते व्यवहार को जानते हैं, तो दूसरी तरफ रिसर्च सेंटर्स उन्हें मौसम पूर्वानुमान, बीज से जुड़ी नई जानकारी और किफायती तकनीकों से जोड़ सकते हैं।
- कृषि क्षेत्र के लिए उपयुक्त फसल चक्र और सिंचाई पद्धतियां सुझाई गईं।
- ऊर्जा कंपनियों को अक्षय ऊर्जा पर तेजी से निवेश करने की सलाह दी गई।
- महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी पर भी जोर रहा।
बैठक में एक बात साफ हो गई कि जलवायु परिवर्तन से निपटना एकतरफा नहीं हो सकता। इसके लिए सभी को—सरकारी, निजी, वैज्ञानिक, किसान और आम लोगों—को मिलकर काम करना होगा। जब तक नीति में लचीलापन, अनुसंधान, ट्रेनिंग और आम जनता का सहयोग नहीं जुड़ेगा, तब तक बदलाव मुश्किल है।
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