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गौतम गंभीर ने टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में मचाई सख्ती: 'बहुत हो गया'

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टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में सख्ती का दौर

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मेलबर्न टेस्ट में भारत की 184 रनों की हार ने न केवल प्रशंसकों को चौंकाया बल्कि टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में भी हलचल मचा दी। इस हार के कुछ ही समय बाद, मुख्य कोच गौतम गंभीर ने कठिन फैसले लेते हुए टीम के खिलाड़ियों के बारे में अपनी साफ-साफ बातें रखीं। गंभीर का कहना था कि अब खिलाड़ियों को उनके 'प्राकृतिक खेल' के बजाय टीम की रणनीति का पालन करना होगा।

सूत्रों के अनुसार, गंभीर के इस बयान ने ड्रेसिंग रूम में ना केवल तनाव पैदा किया बल्कि आगे के मैचों के लिए खिलाड़ियों पर दबाव भी बढ़ा दिया। पिछले छह महीनों से गंभीर ने टीम को उनके तरीके से खेलने की अनुमति दी थी, लेकिन अब उन्होंने कहा है कि वह टीम की रणनीति स्वयं तय करेंगे। जो खिलाड़ी उनकी तय रणनीति का पालन नहीं करेंगे, उन्हें 'थैंक यू' कहने की बात भी उन्होंने स्पष्ट की।

गंभीर के सख्त कदम

मेलबर्न टेस्ट से पहले से ही टीम का ड्रेसिंग रूम तनावपूर्ण था, जिसे लेकर टीम के चयन में विवाद और गौतम गंभीर की कुछ खिलाड़ियों जैसे चेतेश्वर पुजारा को टीम में शामिल करने की वकालत जैसी चीज़ें शामिल थीं। पुजारा को टीम में वापस लाने की गंभीर की कोशिश को चयनकर्ताओं ने खारिज कर दिया था।

कप्तान रोहित शर्मा की फॉर्म भी चिंता का विषय रही है और टीम प्रबंधन में ऐसे कुछ सदस्य हैं जिनका चयन सिर्फ गंभीर ने किया है। इन सभी मुद्दों ने टीम की समरसता और निर्णय लेने की प्रवृत्ति को और जटिल बना दिया है।

भावी चुनौतियां और अवसर

भावी चुनौतियां और अवसर

हालांकि टीम के पास अब भी श्रृंखला को 2-2 से ड्रा करने का मौका है, लेकिन गंभीर के कठोर रुख से यह तो साफ हो जाता है कि उन्हें टीम के ड्रेसिंग रूम की स्थिति में सुधार करना है। यह तो वक्त ही बताएगा कि उनके इस कदम का असर टीम पर कैसा पड़ता है। विशेषज्ञों ने यह भी माना है कि हालांकि अल्पकाल में यह रणनीति खिलाड़ियों के अहंकार को नियंत्रित करने और ध्यान केंद्रित करने में मददगार हो सकती है, लेकिन लंबी अवधि के लिए डर और दवाब पर आधारित प्रणाली कामयाब नहीं होती।

गौरतलब है कि सफल खेल व्यवस्थाएं संतुलित मॉडलों पर आधारित होती हैं, जिसमें हार्मोनी और सहयोग का महत्व महत्वपूर्ण होता है। अगर गंभीर को अपने निर्णय में सही ठहरना है, तो उन्हें सीरीज के बाद एक संतुलित योजना पर काम करना होगा ताकि टीम इंडियासमरस रहते हुए अपने लक्ष्यों को हासिल कर सके।

लेखक के बारे में

Vaishnavi Sharma

Vaishnavi Sharma

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूँ और मुझे भारत से संबंधित दैनिक समाचारों पर लिखना बहुत पसंद है। मुझे अपनी लेखन शैली के माध्यम से लोगों तक जरूरी सूचनाएं और खबरें पहुँचाना अच्छा लगता है।

7 टिप्पणि

Oviyaa Ilango

Oviyaa Ilango

जनवरी 2, 2025 AT 14:43

गंभीर का निर्णय उचित है। खिलाड़ी अपनी इच्छा से नहीं बल्कि टीम के हित में खेलें। रणनीति का पालन अनिवार्य है।
अहंकार खेल का दुश्मन है।

Aditi Dhekle

Aditi Dhekle

जनवरी 3, 2025 AT 01:53

इस रणनीतिगत शिफ्ट के पीछे एक गहरा संरचनात्मक अभियान छिपा है। गौतम गंभीर एक फ़िलॉसफिकल लीडरशिप मॉडल को लागू कर रहे हैं जिसमें टीम की एकता को व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के ऊपर प्राथमिकता दी जा रही है। यह न केवल खेल की बात है बल्कि सामाजिक संगठन के सिद्धांतों का प्रयोग है।

Aditya Tyagi

Aditya Tyagi

जनवरी 3, 2025 AT 23:31

अरे यार ये सब बकवास है। खिलाड़ी को डर के आगे झुकना है क्या? रोहित की फॉर्म खराब है तो उसे बाहर कर दो। पुजारा को वापस लाओ। गंभीर खुद खेलते थे ना तो अब बैठकर नियम बना रहे हैं? क्या उन्होंने अपने दिमाग को बंद कर दिया है?
खेल तो मज़े का होना चाहिए।

pradipa Amanta

pradipa Amanta

जनवरी 5, 2025 AT 20:54

गंभीर ने जो किया वो गलत है। खिलाड़ी जिन्होंने देश के लिए खेला है उनको ऐसा क्यों कहा जा रहा है?
अगर टीम नहीं जीत रही तो कोच की गलती है न कि खिलाड़ियों की।

chandra rizky

chandra rizky

जनवरी 6, 2025 AT 19:58

मैं समझता हूँ कि गंभीर जी का मकसद टीम को बेहतर बनाना है। लेकिन डर से नहीं, समझ से बदलाव आता है।
हम भारतीय टीम के खिलाड़ियों को ज्यादा समर्थन दें। वो भी इंसान हैं। 😊

Rohit Roshan

Rohit Roshan

जनवरी 8, 2025 AT 17:16

इस तरह के फैसले के बाद टीम का मनोबल कैसे बना रहेगा? गंभीर जी ने शायद एक नए दृष्टिकोण की शुरुआत की है लेकिन इसे धीरे-धीरे और संवेदनशीलता से लागू करना होगा।
खिलाड़ियों के साथ बातचीत करना जरूरी है। अगर वो अपनी आवाज़ बुलंद कर पाएं तो टीम बेहतर बनेगी। ❤️

arun surya teja

arun surya teja

जनवरी 10, 2025 AT 14:44

टीम इंडिया के लिए एक स्थायी संस्कृति विकसित करना आवश्यक है। गौतम गंभीर के कदम इस दिशा में एक आवश्यक प्रयास हैं। हालांकि, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और टीम की रणनीति के बीच संतुलन बनाना ही वास्तविक नेतृत्व का लक्षण है।
अगर यह अभियान लंबे समय तक चलेगा तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक मानक स्थापित हो जाएगा।

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