2 अप्रैल को केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने लोकसभा में विवादित वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पेश किया, जिससे सदन में गरमागरम माहौल उत्पन्न हो गया। यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में भारी बदलाव लाने का उद्देश्य रखता है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे मुस्लिम धार्मिक अधिकारों पर हमला और संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करार दिया है।
गहराते विवाद और विपक्ष का विरोध
एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में विधेयक की प्रति फाड़ते हुए इसे मुसलमानों को हाशिये पर डालने का हथियार बताया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर मंदिर-मस्जिद विवाद पैदा करने का आरोप लगाया और कहा कि यह विधेयक गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों पर नियंत्रण देगा, जिससे अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन होगा।
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और कांग्रेस के इमरान मसूद सहित विपक्षी सांसदों ने विधेयक को अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया। उन्होंने वक्फ संपत्तियों के लिए गैर-मुस्लिम प्रशासन की अनुमति और 6 महीने में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की समय सीमा का विरोध किया।
सरकार की सफाई और समर्थन
किरन रिजिजू ने जोर देकर कहा कि बिल का लक्ष्य धार्मिक मामलों से अधिक भूमि प्रबंधन पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य अतिक्रमण को रोकना है। भाजपा सांसद तेजस्वी सुर्या ने धारा 40 को हटाने का समर्थन करते हुए इसे भूमि के दुरुपयोग का उपकरण बताया।
इस विधेयक पर सियासी खेल भी देखा गया, जहां एनडीए ने अपने 293 लोकसभा सांसदों को इस पर समर्थन के लिए तैयार किया, वहीं विपक्ष ने इसके खिलाफ एकजुटता दिखाई। विस्तारित बहस के बाद मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई और अब इसका अगला चरण उच्च सदन राज्य सभा में होगा।
क्षेत्रीय प्रतिक्रियाओं में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने विधेयक वापस लेने की मांग की, जबकि अकाली दल ने भाजपा पर विभाजनकारी टिप्पणियां करने का आरोप लगाया। आम आदमी पार्टी ने इस विधेयक को महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया।