बांग्लादेश में हिंसक विरोध के बीच शेख़ हसीना का इस्तीफा, चुनाव के इंतजार में देश

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बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति इस समय बहुत तनावपूर्ण है। देश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया है। विरोधियों का कहना है कि सरकार ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते इनके खिलाफ कार्यवाही की है, जबकि सरकार ने इन आरोपों से इंकार किया है। इस इस्तीफे के बाद से देश में गंभीर अस्थिरता का माहौल बन गया है।

शेख़ हसीना का इस्तीफा तब आया जब उनके प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया कोरोप्शन के आरोपों में जेल में बंद हैं। खालिदा जिया को 2018 में 17 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उनकी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का दावा है कि उन पर लगे आरोप फर्जी थे और उन्हें राजनीति से बाहर रखने का प्रयास था। हसीना की पार्टी ने इन दावों को सिरे से नकार दिया है।

हसीना के इस्तीफे से पहले सेना प्रमुख ने अपने जनरलों के साथ एक बैठक की थी। इसमें उन्होंने कर्फ्यू लागू करने और नागरिकों पर गोली चलाने जैसे सख्त कदमों से बचने का निर्णय लिया। यह निर्णय सेना के समर्थन में हसीना की कमी को दर्शाता है।

कहा जा रहा है कि देश में एक अंतरिम सरकार के गठन के लिए बातचीत हो रही है जिसमें नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को नेतृत्व की भूमिका देने पर विचार किया जा रहा है। छात्रों के विरोध प्रदर्शन के संयोजकों ने यूनुस को मुख्य सलाहकार बनाने की मांग की है। सेना प्रमुख ने इन संयोजकों के साथ मुलाकात करने का कार्यक्रम बनाया है ताकि नए अंतरिम सरकार के गठन पर विचार किया जा सके।

देश में जारी हिंसा और अस्थिरता के बीच अगले तीन महीनों में सामान्य चुनाव की आवश्यकता है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बांग्लादेश की राजनीति में शेख़ हसीना और खालिदा जिया के बीच विवाद की जड़ें गहरी हैं। दोनों नेताओं की प्रतिद्वंद्विता दशकों पुरानी है और दोनों के समर्थकों के बीच में भी गहरे मतभेद हैं। खालिदा जिया का रिकार्ड है कि वे भी पहले प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और उन्होंने बार-बार हसीना पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उधर हसीना ने भी जिया पर भ्रष्टाचार और अन्य गड़बड़ियों के आरोप लगाए हैं।

सेना की भूमिका

सेना का बांग्लादेश में राजनीतिक भूमिका अहम रही है। हालांकि अब तक कई बार सेना ने सत्ता हस्तक्षेप किया है, लेकिन हाल के घटनाक्रम में उन्होंने नागरिक अधिकारों को प्राथमिकता देते हुए गोली चलाने और कर्फ्यू लगाने से बचने का निर्णय लिया।

इस निर्णय से शेख़ हसीना की स्थिति कमजोर हो गई, और उनके विरोधियों को बल मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि सेना जनता के साथ खड़ी है और वे इस मामले में एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

भविष्य की चुनौतियां

अंतरिम सरकार के गठन के बाद सबसे बड़ी चुनौती होगी आगामी चुनाव। इसमें निष्पक्षता और पारदर्शिता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी ताकि एक स्थिर और न्यायसंगत शासन व्यवस्था स्थापित हो सके। मुहम्मद यूनुस का नाम इस दिशा में एक उम्मीद जगाता है, लेकिन इसके लिए तमाम राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं को पार करना होगा।

देखना होगा कि क्या बांग्लादेश इस राजनीतिक संकट से उबरकर स्थिरता की ओर बढ़ सकता है या फिर यह विवाद और गहराएगा। इस समय राजनीतिक दलों, सेना और जनता को मिलकर एक अभिनव समाधान की आवश्यकता है ताकि बांग्लादेश शांतिपूर्ण और संयमित लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ सके।

छात्रों का प्रदर्शन

छात्रों के प्रदर्शन ने इस पूरे घटनाक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनके समन्वयकों ने शिखर स्तर पर बातचीत करते हुए मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बनाने की मांग की है। यह मांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सरकार और छात्रों के बीच एक ऐतिहासिक संवाद स्थापित हो सकता है।

इस समय छात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अपने शांतिपूर्ण प्रदर्शन और स्पष्ट मांगों के माध्यम से राजनीतिक संस्कृति में बदलाव की एक नई बयार ला सकते हैं।

निष्कर्ष

बांग्लादेश इस समय राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। शेख़ हसीना का इस्तीफा और खालिदा जिया के मामले ने देश को एक दोराहे पर खड़ा कर दिया है। अब यह देखना बाकी है कि आने वाले समय में वांछित राजनीतिक स्थिरता कैसे प्राप्त की जा सकती है।

लेखक के बारे में

Vaishnavi Sharma

Vaishnavi Sharma

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूँ और मुझे भारत से संबंधित दैनिक समाचारों पर लिखना बहुत पसंद है। मुझे अपनी लेखन शैली के माध्यम से लोगों तक जरूरी सूचनाएं और खबरें पहुँचाना अच्छा लगता है।