अगर आप कभी ब्रिटिश राजतंत्र के बारे में सुना है तो रेज़ा चार्ल्स का नाम आपके कानों पर आ चुका होगा। वह अब इंग्लैंड के राजा हैं, लेकिन उनका सफ़र बहुत लंबा रहा – बचपन से लेकर प्रिंस ऑफ़ वेल्स तक, फिर शाही जिम्मेदारियों की बौछार। इस लेख में हम आसान भाषा में उनके जीवन की मुख्य बातें बताएँगे और देखेंगे कि भारत से उनका क्या जुड़ाव है।
चार्ल्स का जन्म 14 नवम्बर 1948 को लंदन के पैडिंगटन पेंसिल्वेनिया में हुआ था, लेकिन तुरंत ही वह इंग्लैंड लौट आया। उनके पिता थे प्रिंस एलेक्ज़ेंडर, बाद में राजा जॉर्ज VI, और माँ थीं रानी एलिजाबेथ II। चार्ल्स सबसे बड़े बेटे थे, इसलिए उन्हें भविष्य का राजा माना गया। बचपन में उन्होंने कई स्कूलों में पढ़ाई की, जैसे कि गिल्फ़ोर्ट स्कूल जहाँ उन्होंने खेलकूद में भाग लिया और थोड़ा शरारती भी रहे।
जब वह 18 साल के हुए तो सेना में भर्ती हो गए। यहाँ उन्हें नेतृत्व और अनुशासन का असली मतलब समझ आया। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ने लगे, जहाँ से उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और राजदंड पर पहला कदम रखा।
1979 में चार्ल्स ने किम्बर्ली ड्यूक के साथ शादी की, जिससे उनके दो बच्चे – प्रिंस विलियम और हैरि – हुए। हालांकि 1992 में उनका तलाक हुआ, पर इस दौरान उन्होंने कई सामाजिक कारणों को आगे बढ़ाया। "द क्वीन एलिजाबेथ फाउंडेशन" जैसी संस्थाओं की मदद से पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया। वह अक्सर स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाने और पेड़ लगाने का संदेश देते रहे।
2022 में जब रानी एलिजाबेथ II ने अपना राज त्यागा, तो चार्ल्स थ्रू शाही परम्पराओं के अनुसार सिंहासन पर बैठे। उनका नया टाइटल है "चार्ल्स III"। राजा बनने के बाद उन्होंने कई आधुनिकीकरण कदम उठाए – जैसे कि राजदरबार में डिजिटल दस्तावेज़ीकरण को बढ़ावा देना और जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय समझौते को मजबूत करना।
ब्रिटिश राजतंत्र का भारत से गहरा इतिहास है, और चार्ल्स भी इस कड़ी में जुड़े रहे हैं। 1990 के दशक में उन्होंने कई बार भारत की यात्रा की – दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरु जैसे शहरों में स्थानीय शासकों और जनता से मिले। वह अक्सर भारतीय संस्कृति और कला की सराहना करते हुए कहा कि "भारत एक रंगीन किताब है"। इसके अलावा, वे पर्यावरण संरक्षण में भारत के साथ सहयोग भी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके फाउंडेशन ने कुछ भारतीय NGOs को ग्रांट दी है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ जल और हरियाली परियोजनाओं को मदद मिली।
आज रेज़ा चार्ल्स का काम सिर्फ ब्रिटेन तक सीमित नहीं रहा; वह वैश्विक मंच पर भी आवाज़ बन गए हैं। चाहे वह जलवायु मीटिंग हो या बच्चों की शिक्षा, उनका ध्यान हमेशा लोगों के जीवन सुधारने पर रहता है। अगर आप उनके बारे में और जानना चाहते हैं तो उनकी आधिकारिक वेबसाइट या समाचार पत्रों से अपडेट ले सकते हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो रेज़ा चार्ल्स सिर्फ एक राजघराने का सदस्य नहीं, बल्कि वह समाजसेवी, पर्यावरण कार्यकर्ता और अंतरराष्ट्रीय कूटनीती के खिलाड़ी भी हैं। उनका सफर हमें सिखाता है कि शक्ति को जिम्मेदारी से इस्तेमाल किया जा सकता है, चाहे आप किस देश या संस्कृति में हों।
ऑस्ट्रेलियाई सांसद लिडिया थॉर्प ने राजा चार्ल्स के दौरे के दौरान ऑस्ट्रेलिया के संसद में उनकी भाषण के बीच आदिवासी अधिकारों के लिए गुस्से में प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ब्रिटिश राजशाही के तहत आदिवासियों पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी मांग थी कि औपनिवेशिक शासन के दौरान छीनी गई जमीन और अवशेष लौटाए जाएं। उनके इस विरोध को मिला-जुला समर्थन मिला है।
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