22
अक्तू॰
2024

ऑस्ट्रेलियाई संसद में लिडिया थॉर्प की बहादुर आवाज
ऑस्ट्रेलियाई सांसद लिडिया थॉर्प, जो कि एक जानी-मानी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हैं, ने एक बार फिर इतिहास में दर्शाई गई अन्याय और शोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है। यह घटना तब घटित हुई जब राजा चार्ल्स ऑस्ट्रेलिया की संसद में अपने दौरे के दौरान भाषण दे रहे थे। भाषण के दौरान, लिडिया थॉर्प ने अचानक खड़े होकर उनके खिलाफ गुस्से में नारे लगाए। उन्होंने कहा, 'आप मेरे राजा नहीं हैं' और 'हमें वो लौटाओ जो आप हमसे छीन ले गए थे – हमारी हड्डियाँ, हमारे खोपड़ी, हमारे बच्चे, हमारे लोग।' यह उनका एक स्पष्ट संदेश था कि आदिवासी समुदाय की सुरक्षा और उनके अधिकारों की लड़ाई जारी है।
ब्रिटिश राजशाही का ऐतिहासिक अन्याय
लिडिया थॉर्प की इस प्रतिक्रिया का आधार अंग्रेजों द्वारा ऑस्ट्रेलिया पर नियंत्रण के दौरान आदिवासियों के खिलाफ किए गए अन्याय पर आधारित है। ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर कई मूल निवासियों की जमीन कब्जाई, उन्हें उनके घरों से बेदखल किया और उनके संस्कृतियों को मिटाने का प्रयास किया। इतिहास में दर्ज इन अन्यायों के खिलाफ थॉर्प की मांगे विशेष रूप से इस तथ्य पर केंद्रित रहीं कि राजा चार्ल्स के परिवार के पास अभी भी आदिवासी हड्डियाँ और खोपड़ियों के अवशेष मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इन वस्तुओं को लौटाया जाना चाहिए और ब्रिटिश साम्राज्य को अपनी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए।
आरक्षण और प्रतिक्रिया
लिडिया थॉर्प की इस बहादुर प्रतिक्रिया को मिलेजुले समर्थन और विरोध का सामना करना पड़ा है। कई लोगों ने उनकी सत्यनिष्ठा की सराहना की और आदिवासी अधिकारों के समर्थन में उनके कदम को सही ठहराया। दूसरी ओर, कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस घटना को अस्वीकार्य मानते थे और मानते थे कि इसे अलग तरीके से निपटना चाहिए था। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बनीज, जो देश को गणराज्य बनाने का समर्थन करते हैं, ने इस घटना पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
भविष्य की संभावनाएं
जहां तक ऑस्ट्रेलिया में गणराज्य बनने की संभावनाएं हैं, फिलहाल इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है परंतु यह मुद्दा भविष्य में अपनाए जाने के संकेत दिए गए हैं। लिडिया थॉर्प की इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी अधिकारों की ओर सबका ध्यान खींचा है। यह सम्मानीय है कि थॉर्प जैसी महिलाएं बिना किसी डर के अपनी आवाज उठाती हैं और ऐसे मुद्दों पर बहस को आमंत्रित करती हैं।
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