क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग वह विज्ञान है जिसमें बहुत कम तापमान (‑150°C से नीचे) पर सामग्री को बनाना, संभालना और इस्तेमाल करना सिखाया जाता है। हम रोज़मर्रा की चीज़ों में इसे नहीं देखते, लेकिन एयरोस्पेस, हेल्थकेयर और ऊर्जा क्षेत्र में इसका बड़ा रोल है। अगर आप सोचें कि बर्फ़ से भी ठंडा कुछ हो सकता है तो यही वो तकनीक है जो बहुत छोटे तापमान पर काम करती है।
इस फील्ड की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में हुई, जब वैज्ञानिक ने लिक्विड एयर बनाना शुरू किया। आज हम लिक्विड नाइट्रोजन, हेलियम और हाइड्रोजन जैसी चीज़ें बड़ी मात्रा में बना रहे हैं। ये सब क्रायोजेनिक प्रक्रियाओं से संभव हुआ है, जिससे विभिन्न उद्योगों को तेज़ी और सटीकता मिली है।
सबसे बड़ा प्रयोग एयरोस्पेस में मिलता है। रॉकेट इंजन के फ्यूल टैंक को लिक्विड हाइड्रोजन से भरने के लिये बहुत ठंडा करना पड़ता है, नहीं तो गैस बनकर उड़ान नहीं दे पाएगा। इसी तरह मेडिकल क्षेत्र में रक्त और अंगों को लंबे समय तक बचाने के लिए क्रायोप्रेज़र्वेशन तकनीक इस्तेमाल होती है। बायोलॉजी लैब्स में कोशिकाओं को फ्रीज़ करने से रिसर्च तेज़ हो जाता है।
ऊर्जा सेक्टर भी इस पर निर्भर करता है। लिक्विड नाइट्रोजन के मदद से सॉलर पैनल की दक्षता बढ़ाने वाले कूलिंग सिस्टम बनते हैं, जिससे उत्पादन में कमी नहीं आती। इसके अलावा पेट्रोकेमिकल प्लांट्स में एंटी-फ्रॉस्ट उपायों के लिये क्रायोजेनिक फ्लूइड का उपयोग किया जाता है, जिससे पाइपलाइन में जमा नहीं होते और रख‑रखाव कम होता है।
क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा है। बहुत नीचे तापमान पर सामग्री का विस्तार या संकुचन अचानक हो सकता है, जिससे टैंकों में लीकेज या विस्फोट हो सकते हैं। इसलिए डिज़ाइन करते समय विशेष इंसुलेशन और सेंसर लगाना जरूरी होता है। दूसरा मुद्दा लागत है – लिक्विड एयरोस्पेस फ्यूल बनाने की कीमत अभी भी बहुत हाई है, इसलिए शोधकर्ता नई किफायती प्रक्रियाओं पर काम कर रहे हैं।
भविष्य में इस तकनीक का रोल और बढ़ेगा। क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए सुपर-कूलिंग आवश्यक होगा, और क्रायोजेनिक रेफ़्रिजरेशन से डेटा सेंटरों की ऊर्जा खपत घटेगी। साथ ही स्पेस टूरिज्म को सस्ता बनाने के लिये लाइटवेट लिक्विड फ्यूल सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं। अगर आप इंजीनियरिंग में करियर बनाना चाहते हैं तो इस क्षेत्र के कोर्स और इंटर्नशिप देखना एक स्मार्ट स्टेप हो सकता है।
संक्षेप में, क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग न सिर्फ़ विज्ञान का मज़ेदार हिस्सा है, बल्कि रोज़मर्रा की तकनीकों को बेहतर बनाता भी है। चाहे आप छात्र हों या प्रोफेशनल, इस क्षेत्र के बेसिक्स समझना आपके ज्ञान में नया आयाम जोड़ देगा।
डॉ. वी नारायणन को 14 जनवरी, 2025 से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। तामिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में जन्में नारायणन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं की और फिर मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। वे क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एम.टेक. करने के बाद 1984 में ISRO से जुड़े। उनकी नेतृत्व क्षमता ISRO के भविष्य को नई ऊँचाइयों पर ले जाने की उम्मीद है।
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