हर साल लाखों बच्चे जन्म लेते हैं, लेकिन उनमें से बहुत सारे बच्चें पहले महीने में ही मर जाते हैं। यह सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि वास्तविक जिंदगी की कहानी है। अगर आप भी इस बात को समझना चाहते हैं कि क्यों ऐसी होती है नवजात मृत्यु और कैसे बचा सकते हैं इन छोटे‑छोटे जीवनों को, तो पढ़ते रहें।
पहला कारण अक्सर मातृ स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। गर्भावस्था में पर्याप्त पोषण नहीं मिलने, देर से दवा लेना या नियमित जांच न कराना, बच्चे की पहली सांस पर भारी असर डालता है। दूसरा बड़ा मुद्दा प्रीटर्म (अध-समय) जन्म है – ऐसे बच्चे शरीर की पूरी तैयारी के बिना ही दुनिया में आते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर रहता है। तीसरा कारण बुनियादी देखभाल का अभाव है: साफ‑सफ़ाई, सही खिलाने की विधि या समय पर टीके नहीं लगवाना। अंत में, ग्रामीण इलाकों में अस्पताल तक पहुँचने में कठिनाइयाँ भी बड़ी बाधा बनती हैं।
सबसे आसान उपाय है माताओं की नियमित जाँच करवाना। अगर आप या आपके परिवार में कोई गर्भवती है, तो हर महीने डॉक्टर को दिखाएँ और आवश्यक सप्लीमेंट्स लें। दूसरा, घर पर स्वच्छता बनायें – हाथ धोना, नली के पानी का इस्तेमाल, बच्चे के बिस्तर को साफ रखना बहुत फायदेमंद रहता है। तीसरा, समय‑समय पर टीके लगवाना अनिवार्य है; यह बीमारियों से बचाव की सबसे सस्ती और असरदार विधि है।
सरकार भी कई योजनाएँ चला रही है – जैसे ‘जननी सुरक्षा योजना’ और ‘बच्चा बचाओ अभियान’। इनका फायदा उठाने में कोई हिचक नहीं चाहिए। अगर आप किसी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र के पास रहते हैं, तो वहाँ से मुफ्त जांच व दवाइयाँ ले सकते हैं।
समुदाय भी मददगार बन सकता है। पड़ोसियों या रिश्तेदारों को जागरूक करें, खासकर उन जगहों पर जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ दूर‑दराज़ हों। छोटे‑छोटे कार्य जैसे माँ को घर में आराम देना, पोषण का ध्यान रखना, बच्चे की नींद सही रखना – ये सब मिलकर नवजात मृत्यु दर को घटा सकते हैं।
अंत में याद रखें, हर बच्चा एक नई उम्मीद है। अगर हम सभी थोड़ा‑थोड़ा योगदान दें तो इन आँकड़ों को बदलना संभव है। तो अगली बार जब कोई माँ कहे ‘मुझे मदद चाहिए’, तो तुरंत सहायता की पेशकश करें और इस दिशा में कदम बढ़ाएँ।
झांसी के सरकारी अस्पताल में हालिया अग्निकांड, जिसमें 10 नवजात की मौत हो गई थी, ने विवेक विहार घटना की दुःखद यादें ताज़ा कर दी हैं, जहां मई 25 को सात नवजात जलकर मरे थे। इन घटनाओं ने अस्पताल सुरक्षा में कमी और प्रशासनिक लापरवाही की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
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