ईद उल अदहा हर साल मुसलमानों के लिये सबसे बड़ा त्योहारी दिन होता है. यह मुहम्मद ﷺ की आज़ीजी को याद दिलाता है जब उन्होंने अपनी इच्छा के बावजूद अल्लाह की आज्ञा से अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी दी थी. इस कहानी से सीख मिलती है कि हममें बलिदान और भरोसा होना चाहिए.
पहले दिन सुबह‑सुबह साफ़‑सुथरा कपड़ा पहनते हैं, फिर मस्जिद में इफ्तार के बाद विशेष नमाज़ (जुमा) पढ़ते हैं. इस नमाज़ के बाद लोग एक‑दूसरे को ईदी मुबारक कहते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं.
कुरबानी का काम सबसे अहम है. अक्सर बकरी, भेड़ या बैल चुना जाता है. यदि आप शहरी क्षेत्र में रहते हैं तो कई जगहों पर किराने‑दुकानें या ऑनलाइन सेवाएँ उपलब्ध होती हैं जो सुरक्षित तरीके से जानवर की खरीद‑फरोख्त और क़ुर्बानी को संभालती हैं.
कुर्बानी के बाद माँस का एक तिहाई हिस्सा गरीबों में बाँटते हैं, दूसरा भाग रिश्तेदारों और दोस्तों को देते हैं और बाकी अपने घर में खा लेते हैं. इस तरह दान‑परोपकार से समाज में भाईचारा बढ़ता है.
आजकल लोग सोशल मीडिया पर अपनी ईदी की तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं, लेकिन याद रखें कि असली खुशी दिल से आती है. घर में सुरक्षित माहौल बनाना जरूरी है: जानवर को साफ‑सुथरा रखिए, बच्चों को दूर रखिए जब तक वह तैयार न हो.
भोजन की बात करें तो हलवा, sheer खीर और समोसे जैसे व्यंजन लोकप्रिय हैं. अगर आप शाकाहारी हैं तो दाल‑का-साज़ या पनीर के कबाब भी बना सकते हैं; इससे सभी को एक साथ टेबल पर बैठाने में आसानी रहती है.
ईद का दिन परिवार की मिलनसारिता बढ़ाता है, इसलिए छोटे‑बड़े रिश्ते बनाते रहें. बुजुर्गों से कहानियाँ सुनें, बच्चों को दान के महत्व समझाएँ और हर साल एक नया लक्ष्य तय करें – जैसे अधिक पर्यावरण‑अनुकूल कुर्बानी या ज्यादा लोगों तक मदद पहुँचाना.
इन आसान टिप्स को अपनाकर आप ईद उल अदहा को न सिर्फ़ धार्मिक रूप से बल्कि सामाजिक तौर पर भी यादगार बना सकते हैं. तो इस ईद, अपने दिल की आवाज़ सुनिए और एक सच्ची मुस्कान के साथ त्यौहार मनाइए.
ईद उल अदहा, जिसे बकरिद भी कहा जाता है, 17 जून सोमवार को जयपुर में मनाया जाएगा। इस दिन की शुरुआत विभिन्न मस्जिदों में सुबह की प्रार्थनाओं से होगी। जयपुर की जामा मस्जिद में प्रार्थना सुबह 6:15 बजे होगी। शिया समुदाय की प्रार्थना 9:00 बजे बडा बानपुरा के शिया ईदगाह में मौलाना सैयद अली इमाम नकवी के नेतृत्व में होगी।
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