गणेश चतुर्थी 2025 में फिर से चर्चित हुआ कि कैसे छोटा‑सा मूषक भगवान गणेश, हिंदू देवता की सवारी बना। इस कहानी के कई रूप, प्राचीन ग्रंथों और आधुनिक लेखों में बिखरे हैं, लेकिन सभी एक ही संदेश देते हैं – बड़े चुनौती को छोटे साहस से मात देना।
पौराणिक रीति‑रिवाज़ों की जड़ों में: कौरंचा की यात्रा
पहला वर्णन कौरंचा, एक स्वर्गीय संगीतकार से शुरू होता है, जिसे ऋषि वामदेव ने अनुचित व्यवहार के कारण चूहा बना दिया। कौरंचा हिमालय के पहाड़ी तल में माउंट कैलास के निकट गांवों को डरा रहा था। जब गणेश ने अपना पाश फेंका, तो पहले चूहा फिसल गया, पर दूसरे फेरे में पाश उसके गले में जकड़ गया। कौरंचा ने पश्चाताप किया, “मैं अब कभी परेशान नहीं करूंगा, कृपा कर मुझे आपका वाहन बनाओ”। गणेश ने पूछ लिया, “क्या तुम मेरे वजन को सहन कर पाओगे?” चूहा कहता है, “मैं अपना आकार बदल लूँगा।” इस तरह कौरंचा, जिसे कभी‑कभी मूषिका कहा जाता है, स्थायी रूप से गणेश का वाहन बना।
गजमुखासुर की कहावत: बंधन तोड़ने का छोटा उपाय
एक अन्य संस्करण गजमुखासुर के बारे में बताता है, जिसे ब्रह्मा (ब्रह्मा) ने अपराजेय बनाने का वरदान दिया था। महासंकट में वह खुद को चूहा बनाकर बच निकला, सोचता था कि इस छोटे रूप में देवता नज़र नहीं करेंगे। परन्तु गणेश ने उसे देख लिया, उसकी पीठ पर चढ़ गया और भारी वजन से वह पतित हो गया। कुछ कथाएँ कहती हैं कि गणेश ने अपना दाँत फेंककर उसे स्थायी रूप से चूहे में बदल दिया, जबकि अन्य में गजमुखासुर विनती करता है और गणेश उसे क्षमा करके अपना वाहन बनाता है।
मूषिकासुर का स्वर: अहंकार पर जीत की दास्तान
तीसरा प्रसंग मूषिकासुर की कहनी बताता है, जो लोगों को सताता रहा। जब गणेश ने उससे द्वंद्व किया, तो शक्ति से नहीं बल्कि ज्ञान से उसे पराजित किया। मूषिकासुर ने अपने प्राण बचाने के लिए स्वयं को वाहन बनाने की पेशकश की। इस कथा से सिद्धांत उभरता है – गणेश कहीं भी उपस्थित हो सकता है, क्योंकि उसका वाहन छोटा चिकनी सरीखा छेद से गुजर सकता है, अंधेरे में भी रास्ता खोज लेता है।

प्रतीकात्मक विश्लेषण: अहंकार पर विजय
हिंदु टोन (Hindutone) के एक गहराईपूर्ण लेख में कहा गया है कि गणेश जिसका मुख्य कार्य ‘अवरोध हटाना’ है, वह छोटे चूहे पर बैठा है, जो ‘इच्छा, भय और असुरक्षा’ का प्रतिनिधित्व करता है। चूहा मन के अंधेरे को दर्शाता है; गणेश की शक्ति इसे नियंत्रित करने की शिक्षा देती है। Hari Hara Kshethram Temple, Austin में भी यही समझाया जाता है – सुबह जल्दी उठना, शुद्ध वस्त्र पहनना, दीया जलाना और मंत्र जाप करना, ताकि मन का शोर शांत हो सके।
गणेश चतुर्थी का समग्र महत्व: दस दिन की यात्रा
जि के योग (JKYog) के अनुसार, इस उत्सव में देवताओं को विश्व का चक्रवात पूरा करने को कहा गया था। गणेश ने अपने छोटे वाहन की सीमाओं को समझकर अपने माता‑पिता शिव और पार्वती को ही क्षितिज माना, जिससे उसे प्रथम पूजन का अधिकार मिला। चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक का समय ‘आह्वान से मिलन तक’ की आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है, जबकि विभिन्न क्षेत्रों में रीति‑रिवाज़ों में विविधता देखी जाती है।

मुख्य तथ्य
- कौरंचा को वामदेव ने चूहा किया – यह घटना हिमालय के तल में घटित हुई।
- गजमुखासुर ने ब्रह्मा से अपराजेय वरदान प्राप्त किया, फिर छोटा रूप अपनाया।
- मूषिकासुर ने ज्ञान से हार मान कर स्वयं को वाहन बना लिया।
- गणेश का चूहा वाहन ‘इच्छा‑भय‑अहंकार’ का प्रतीक है।
- गणेश चतुर्थी 2025 में 10 दिनों तक भारत के कई शहरों में मनाया गया।
भविष्य की ओर देखना: शिक्षा व जागरूकता
भविष्य में आशा है कि मंदिर और शैक्षणिक संस्थान इस पौराणिक कथा को बच्चों में आत्मजागरूकता के साधन के रूप में प्रस्तुत करेंगे। आज के तेज़-तर्रार जीवन में, छोटे चूहे पर बैठे बड़े देवता की छवि हमें याद दिलाती है कि भौतिक आकार से नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण से सफलता मिलती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गणेश का वाहन चूहा क्यों है?
पौराणिक कथाओं में चूहा ‘इच्छा‑भय‑अहंकार’ का प्रतीक है। गणेश इस छोटे जीव पर सवार होकर दिखाते हैं कि मन के नकारात्मक प्रवृत्तियों को भी ज्ञान और नियमन से विजेता बनाया जा सकता है।
कौरंचा की कथा किन स्रोतों में मिलती है?
यह कथा मुख्यतः ‘वेदांत’ के बच्चों के लिये तैयार किए गए साहित्य, ‘Road to Nara’ (2025) और विभिन्न धार्मिक प्रकाशनों में वर्णित है। इनमें कौरंचा को वामदेव द्वारा श्रापित बताया गया है।
गजमुखासुर के बारे में क्या तथ्य हैं?
गजमुखासुर को ब्रह्मा ने ‘कोई भी देवता, हथियार या जीव उसे पराजित नहीं कर सकते’ की अटूट रक्षा दी थी। फिर भी उसने छोटी चूहे की रूप धारण कर बचाव किया, जिसे गणेश ने अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया।
हारी हारा क्षेत्र मंदिर (Austin) इस कथा को कैसे व्याख्यायित करता है?
ऑस्टिन स्थित इस मंदिर में बताया जाता है कि चूहा इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है। पूजन से पहले साफ‑सुथरा होना, दीप जलाना और मंत्रों का जाप करना इन इच्छाओं को नियंत्रित करने की क्रिया है।
गणेश चतुर्थी के दस दिन का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
पहला दिन ‘आह्वान’ (आशिर्वाद) दर्शाता है, और अंतिम दिन ‘अनंत चतुर्दशी’ आत्म–एकता को प्रतीकित करता है। इस अवधि में भक्त मन को शुद्ध कर, अहंकार को परास्त करके अंतिम एकता की ओर बढ़ते हैं।
1 टिप्पणि
Pravalika Sweety
अक्तूबर 11, 2025 AT 00:15गणेश चतुर्थी के इस संस्करण ने फिर से दिखा दिया कि पारंपरिक कथा में आधुनिक दृष्टिकोण कितना महत्वपूर्ण है। छोटे चूहे का प्रतीक और उसके पीछे की शिक्षाएँ आज के युवा वर्ग को आत्म-नियंत्रण सीखने में मदद कर सकती हैं।