देशीआर्ट समाचार

स्वतंत्र सांसद विशाल पाटिल ने राहुल गांधी से मुलाकात की, कांग्रेस को समर्थन देने का किया ऐलान

शेयर करना

महाराष्ट्र के सांगली लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर स्वतंत्र सांसद बने विशाल पाटिल ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है। नई दिल्ली में हुई इस महत्वपूर्ण मुलाकात में पाटिल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। पाटिल के साथ उनके मार्गदर्शक कांग्रेस विधायक विश्वजीत कदम भी उपस्थित थे। इस अवसर पर पाटिल ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का औपचारिक पत्र सौंपा।

विशाल पाटिल की इस पहल से कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में नया संजीवनी मिली है, जिससे उनकी संख्या 100 हो चुकी है। पाटिल का कांग्रेस पार्टी से पुराना नाता है, उनके दादा वसंतदादा पाटिल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन कांग्रेस से टिकट न मिलने के कारण विशाल पाटिल ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के सिटिंग सांसद संजयकाका पाटिल को हराया।

महाराष्ट्र में पाटिल परिवार की पहचान कांग्रेस से अटूट जुड़ाव की रही है। विशाल पाटिल के पिता, दादा और भाई, सभी ने कांग्रेस पार्टी में विभिन्न पदों को संभाला है। इस तरह की मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि के बावजूद, विशाल पाटिल ने चुनाव में स्वतंत्र उतरने का जोखिम उठाया और उसे सफलता भी मिली।

राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात के दौरान, पाटिल ने इस बात पर जोर दिया कि उनका कांग्रेस पार्टी के प्रति प्यार और सम्मान अटूट है। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी परिवारिक पहचान कांग्रेस के साथ ही है और भविष्य में भी रहेगी।

विशाल पाटिल और उनके परिवार का ठाकरे परिवार के साथ भी घनिष्ठ संबंध रहा है। इस मुलाकात के बाद पाटिल ने इस संबंध को भी सुचारू रूप से आगे बढ़ाने की कामना की और कहा कि किसी भी प्रकार के मतभेद को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में विशाल पाटिल का कांग्रेस में आना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह कदम महाराष्ट्र में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करने में सहायक हो सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे इस मौके का फायदा उठाते हुए पार्टी की छवि को और मजबूत करेंगे।

पाटिल का यह निर्णय उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच भी काफी सराहा जा रहा है। सांगली और आसपास के क्षेत्रों में इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। स्थानीय जनता और पार्टी कार्यकर्ता इस बात से उत्साहित हैं कि पाटिल की वापसी से कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली है।

इस नई राजनीतिक स्थिति से बने समीकरणों पर सभी की नजरें अब टिकी हुई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी समय में कांग्रेस पार्टी इस नये संयोग का किस तरह से लाभ उठाती है और महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में क्या बदलाव आता है।

लेखक के बारे में

Vaishnavi Sharma

Vaishnavi Sharma

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूँ और मुझे भारत से संबंधित दैनिक समाचारों पर लिखना बहुत पसंद है। मुझे अपनी लेखन शैली के माध्यम से लोगों तक जरूरी सूचनाएं और खबरें पहुँचाना अच्छा लगता है।

11 टिप्पणि

Aditi Dhekle

Aditi Dhekle

जून 8, 2024 AT 02:40

ये जो पाटिल परिवार का राजनीतिक विरासत है, वो असल में महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास का एक जीवंत अध्याय है। दादा वसंतदादा के बाद से ये परिवार राज्य के निर्माण में शामिल रहा है। अब विशाल ने स्वतंत्र रूप से लड़कर भी कांग्रेस का दामन थाम लिया, ये एक राजनीतिक रिसेट जैसा है। अब ये देखना है कि क्या कांग्रेस इस नए बल को सही तरीके से इस्तेमाल कर पाती है।

Aditya Tyagi

Aditya Tyagi

जून 10, 2024 AT 00:08

ये सब बकवास है। अगर उन्हें कांग्रेस से प्यार है तो टिकट न मिलने पर स्वतंत्र बनने की जरूरत क्या थी? ये सिर्फ अपनी पॉपुलैरिटी बढ़ाने का नाटक है। अब वापस आ गए तो अच्छा हुआ। लेकिन ये लोग तो हमेशा ऐसे ही रहते हैं।

pradipa Amanta

pradipa Amanta

जून 11, 2024 AT 02:19

पाटिल का आना कांग्रेस के लिए बचाव नहीं बल्कि बेचारगी का संकेत है जब तक वो अपने आप को बदल नहीं लेते तो ये सब बस एक फैक्ट रहेगा जिसे कोई नहीं मानेगा

chandra rizky

chandra rizky

जून 11, 2024 AT 15:49

अच्छा बात है भाई 😊 राजनीति में नाते और विचार दोनों मायने रखते हैं। पाटिल परिवार का कांग्रेस से रिश्ता तो सिर्फ टिकट के लिए नहीं, बल्कि विश्वास के लिए है। अब देखते हैं कि कैसे दोनों तरफ से मेल बैठता है। इससे महाराष्ट्र की राजनीति ज्यादा स्थिर होगी। 🙏

Rohit Roshan

Rohit Roshan

जून 11, 2024 AT 17:42

ये बात बहुत अच्छी है। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने परिवार की परंपरा को बरकरार रखते हुए अपने विचारों के लिए जोखिम उठाता है, वो असली नेता होता है। कांग्रेस को इस नए ऊर्जा को सही तरीके से इस्तेमाल करना होगा। अगर वो इसे बस एक नंबर की तरह देखेंगे तो फिर से गलती हो जाएगी।

arun surya teja

arun surya teja

जून 13, 2024 AT 16:26

राजनीतिक परिवारों की भूमिका को समझना आवश्यक है। विशाल पाटिल का निर्णय एक व्यक्तिगत चुनाव नहीं, बल्कि एक सामाजिक विरासत का निर्वाह है। उनकी वापसी से कांग्रेस को एक ऐतिहासिक वैधता मिलती है। यह एक शांत, लेकिन गहरा संकेत है।

Jyotijeenu Jamdagni

Jyotijeenu Jamdagni

जून 15, 2024 AT 07:09

ये तो जैसे कोई बूढ़ा बाबा घर से निकल गया था बारिश में चलने के लिए और फिर बरसात रुक गई तो वापस आ गया 😂 लेकिन दोस्तों, ये बाबा अब बारिश के बाद की मिट्टी को जानता है। उनकी वापसी बस नंबर बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने के लिए है। सांगली के लोग अब बस एक चीज़ देख रहे हैं - क्या कांग्रेस उनके लिए असली होगी या सिर्फ एक नाम?

navin srivastava

navin srivastava

जून 15, 2024 AT 08:47

कांग्रेस को बचाने के लिए अब तक के लोग आ रहे हैं जिनके पास अपनी पहचान है। ये सब बस एक राजनीतिक ट्रेन को बचाने की कोशिश है। लेकिन जब तक लोगों के दिलों में विश्वास नहीं आएगा तो ये सब बस एक चाल है। और अब तक किसी ने भी ये नहीं सुना कि कांग्रेस ने कभी अपनी गलतियाँ स्वीकार की हों?

Aravind Anna

Aravind Anna

जून 15, 2024 AT 22:24

कांग्रेस ने अब बचाव शुरू कर दिया है और इस बार उन्होंने एक ऐसे आदमी को अपनाया जिसके पास लोकप्रियता है, परिवार का नाम है और जनता का विश्वास है। अब बस ये देखना है कि क्या वो इसे अपनी अंधविश्वासी नीतियों में नहीं खो देते। विशाल पाटिल को असली शक्ति दो। वो अब कांग्रेस का नहीं, भारत का नेता है। अगर वो बेवकूफ बन गए तो लोग उन्हें फिर से छोड़ देंगे।

Rajendra Mahajan

Rajendra Mahajan

जून 16, 2024 AT 07:43

इस घटना का एक दर्शनिक पहलू है। विशाल पाटिल ने अपने परिवार के इतिहास को अपने व्यक्तिगत चुनाव के लिए बलिदान नहीं किया, बल्कि उसे अपने नए रास्ते के लिए आधार बनाया। यह एक विरोधाभास है - परंपरा का उपयोग विप्लव के लिए। राजनीति में अक्सर वही लोग बदलाव लाते हैं जो पुराने ढांचे को सबसे अच्छी तरह जानते हैं। यह अभी शुरुआत है, और अगर कांग्रेस इसे एक रूढ़िवादी चाल के रूप में देखती है, तो वह अपना अंतिम अवसर खो देगी।

Aditi Dhekle

Aditi Dhekle

जून 17, 2024 AT 18:39

वाकई दिलचस्प बात है कि जब विशाल पाटिल ने स्वतंत्र बनकर लड़ा तो उनके दादा के नाम के बावजूद भी उनके खिलाफ एक विशेष तरह का अहंकार था। अब जब वो कांग्रेस में आ गए, तो अचानक सब उनके नाम का जिक्र करने लगे। ये राजनीति का असली चेहरा है - नाम की रोशनी तब चमकती है जब वो लाभ देती है।

एक टिप्पणी लिखें